कोरोना वायरस जिस तेजी से लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है उसको देखते हुए इससे जल्द छुटकारे की उम्मीद धुंधली होती जा रही है। ऐसा इसलिए भी है कि क्योंकि इसकी वजह से जान गंवानें वालों का आंकड़ा एक लाख तक पहुंचता दिखाई दे रहा है। इसकी एक दूसरी वजह ये भी है कि इसकी कोई पुख्ता दवा पूरी दुनिया में किसी देश के पास भी उपलब्ध नहीं है। इतना ही नहीं कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या को लेकर उठ रहे सवाल भी इन्हीं आशंकाओं को बल दे रहे हैं। इन सभी के बीच लांसेट इंफेक्शन डिजीज में पब्लिश हुआ एक रिसर्च पेपर भी इसी तरफ इशारा कर रहा है।
इस रिसर्च पेपर को जर्मनी की ग्योटिंगन यूनवर्सिटी के शोधकर्ता रिसर्चर क्रिस्टियान बोमर और सेबास्टियान फोलमर ने तैयार किया है। उन्होंने इसमें कहा है कि इस बात की बहुत ज्यादा संभावना है कि दुनिया भर की स्वास्थ्य सेवाओं ने जितने मामले दर्ज किए हैं, वे बेहद कम हैं। इस रिसर्च पेपर के आधार पर कई अखबारों ने इसको प्रमुखता से प्रकाशित भी किया है। आपको बता दें कि सेबेस्टियन फोलमर डेवलेपमेंट इकनॉमिक्स के प्रोफेसर हैं
जर्मनी के इन शोधकर्ताओं के मुताबिक कोरोना वायरस के मरीजों का जो आंकड़ा अब तक मिला है वो डाटा दिखाता है कि दुनिया भर के देश कोरोना वायरस के औसतन छह फीसदी मामलों का ही पता लगा सके हैं। डायचे वेले के मुताबिक इनका दावा है कि इस वायरस से संक्रमित लोगों की असली संख्या इससे कई गुना ज्यादा हो सकती है और ये लाखों से निकलकर करोड़ों में जा सकती है।
इस रिसर्च पेपर को तैयार करने के लिए शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस संक्रमण की शुरुआत से अब तक हुई मौतों तक के आंकड़े जुटाकर इनका विश्लेषण किया है। यही आंकड़े इस रिपोर्ट का आधार भी बने हैं। आधिकारिक रूप से पूरी दुनिया में दर्ज आंकड़ों की समीक्षा की गई। इस रिपोर्ट के नतीजों के तौर पर प्रोफेसर फोलमर ने सुझाव भी दिया है कि सरकारों और नीति निर्माताओं को मामलों की संख्या के आधार पर योजना बनाते वक्त बहुत ज्यादा एहतियात बरतनी होगी।
शोध पेपर में सलाह के तौर पर कहा गया है कि इनकी सही संख्या पता लगाने के संक्रमित व्यक्तियों को अल करने और उनके संपर्क में आए सभी व्यक्तियों का परीक्षण किया जाना चाहिए। अगर हम ऐसा करने में नाकाम रहे और ये वायरस किसी व्यक्ति के शरीर में लंबे समय के लिए छिपा रह गया तो आने वाले समय में यह फिर से दुनिया को संकट में डाल सकता है।
उन्होंने इस रिपोर्ट में यहां तक कहा गया है कि पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का पता लगाने के लिए जो टेस्टिंग किट का इस्तेमाल किया जा रहा है उनकी क्वालिटी एक समान नहीं है। ये एक बड़ी वजह है जिसकी वजह से दुनियाभर में दर्ज इसके मरीजों के सटीक संख्या का अनुमान संभवत: सही तौर पर सामने नहीं आया है। दुनियाभर में इसकी वजह से एक बड़ा अंतर देखने को मिल रहा है। बोमर और फोलमर का अनुमान है कि 31 मार्च 2020 तक जर्मनी में वास्तव में कोरोना वायरस के करीब 4,60,000 मामले थे।
इस हिसाब से इन शोधकर्ताओं ने अमेरिका में संक्रमित व्यक्तियों की संख्या को 31 मार्च तक एक करोड़ से ज्यादा आंका है। इसी मॉडल को अपनाते हुए उन्होंने स्पेन में 50 लाख, इटली में 30 लाख और ब्रिटेन में 20 लाख लोगों के संक्रमित होने का अनुमान लगाता है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि जॉन हॉपकिंग्स यूनिवर्सिटी के आंकड़ों के मुताबिक 9 अप्रैल 2020 तक दुनिया भर में कोरोना वायरस के कुल 15 लाख से ज्यादा मामले आधिकारिक रूप से दर्ज हुए हैं।
हालांकि जर्मनी के शोधकर्ताओं के अनुमान और जॉन हॉपकिंग्स के आंकड़ों में बहुत बड़ा अंतर साफ दिखाई दे रहा है। जर्मनी के शोधकर्ताओं की रिपोर्ट में कहा गया है कि जब उन्होंने इसको तैयार किया है तब जॉन हॉपकिंग्स के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में 10 लाख से भी कम मामलों की पुष्टि हुई है। इसके बाद भी हमारा अनुमान है कि इनकी संख्या करोड़ों में है।
शोधकर्ताओं की मानें तों उनका ये दावा है कि अपर्याप्त सुविधाओं और देर से हुए परीक्षणों की वजह से यूरोप के कुछ देशों में जर्मनी के मुकाबले कहीं ज्यादा मौत इस वायरस की वजह से हुई हैं। शोध में कहा गया है कि जर्मनी में कोविड-19 के अनुमानिततौर पर करीब 15.6 फीसदी मामले ही आधिकाारिक तौर पर दर्ज हुए हैं। इटली में यह संख्या 3.5 फीसद और स्पेन में 1.7 फीसद है। वहीं अमेरिका में 1.6 फीसद और ब्रिटेन 1.2 फीसद है।