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जी भरभर मनमानी-पाताल गया पानी, बढ़ी प्यास-सूखे कुएंजी भरभर मनमानी-पाताल गया पानी, बढ़ी प्यास-सूखे कुएं

सैकड़ों लोगों की प्यास बुझाने वाले ऐतिहासिक इंदारा कुएं अब पूरी तरह से साथ छोड़ गए हैं। संकरी गलियों में मौजूद यह वह कुएं थे, जो पानी से हमेशा लबालब रहते थे। पाइप्ड वॉटर सप्लाई क्या शुरू हुई हमने इन प्राकृतिक कुओं को कूड़े से ही पाट डाला। नब्बे के दशक में तत्कालीन नगर विकास मंत्री लाल जी टंडन ने इन कुओं को पुनर्जीवित कर इनमें बोरिंग करा कर जलापूर्ति शुरू कराई। निजाम बदला और देखरेख के अभाव में कुएं फिर सूखने लगे। लगभग डेढ़ दशक पहले राजधानी में करीब 27 इंदारा कुओं से जलापूर्ति की जाती थी। दो-दो घटे सुबह-शाम जलकल विभाग इन पुराने कुओं से क्षेत्र में जलापूर्ति करता था। पानी मिला तो लालच भी बढ़ने लगा और कुओं से चार-पाच घटे आपूर्ति की जाने लगी। नतीजा यह हुआ कि जल स्तर नीचे जाने लगा, जिससे कुएं सूखने लगे। जलकल अभियंता बताते हैं कि कदम रसूल वार्ड के अशफाक उल्ला नगर में मौजूद कुआ महीने भर पहले तक लोगों की प्यास बुझा रहा था। जल स्तर नीचे गया तो कुएं से पानी छूट गया। आज आलम यह है कि पुनर्जीवित किए गए सभी कुएं सूख चुके हैं और इनमें लगे ताले प्यासे लोगों को मुंह चिढ़ा रहे हैं। राजधानी में कब्जों ने पी लिए कुएं और तालाब, खतरे में जल निकायों का अस्तित्व यह भी पढ़ें जलकल विभाग की पूर्व महाप्रबंधक राजीव बाजपेई कहते हैं कि इंदारा कुएं ज्यादातर संकरी गलियों या घनी आबादी के बीच थे। बड़े कुओं को इंदारा कहा जाता था। पुराने लखनऊ की तंग गलियों में मौजूद ऐसे कुओं को लोगों ने कूड़ा घर बना दिया था। कई जगह कब्जे भी हो गए थे। दरअसल यह कुएं ऐसे स्थानों पर थे जहा पानी की दिक्कत थी। जलकल द्वारा की जाने वाली सप्लाई यहा पहुंच नहीं पाती थी और नलकूप बनाने की जगह नहीं थी। ऐसे में इलाके में पानी के संकट को खत्म करने के लिए लालजी टंडन ने इनकी सफाई करा कर पुनर्जीवित कराने का काम शुरू किया। कुओं की सफाई कर उसमें बोरिंग की गई। आस-पास के 150-200 घरों तक कुएं से आपूर्ति होने लगी। धीरे-धीरे जल स्तर सरकने लगा। साथ ही लालच बढ़ा और कुओं से लगातार पानी लिया जाने लगा। जबकि कुओं में पानी रुक-रुक कर आता है। नतीजा यह हुआ कि कुएं सूखने लगे। जलकल विभाग जोन तीन के अवर अभियंता अरूण सिंह बताते हैं कि अशफाक उल्ला नगर में मोहन मीकिंस के पीछे बने इंदारा कुएं से तो बीते माह तक आपूर्ति की जा रही थी। लेकिन अब इसमें पानी नहीं है। इसी तरह पुराने शहर के विभिन्न इलाकों में मौजूद कुएं भी अब सूख चुके हैं। गोमती के पानी में आशिक सुधार : गोमती नदी में शारदा नदी का पानी मिलने से अब आशिक सुधार नजर आ रहा है। तीन दिन पहले हुई बारिश का पानी भी पीछे से गोमती से आने से नदी की गंदगी छंट गई है। मंगलवार को गऊघाट पंम्पिंग स्टेशन पर पानी की गुणवत्ता में सुधार नजर आया। जलकल महाप्रबंधक एसके वर्मा ने बताया कि मंगलवार को पानी की गुणवत्ता में कुछ और सुधार नजर आया है, लेकिन अभी गोमती नदी में गंदगी है, बस शारदा नदी और पानी का पानी गोमती नदी में मिलने से गंदगी कम हुई है। दो तीन दिन में और सुधार की संभावना है। गोमती नदी का लेबल कम होने और शारदा नदी का पानी न छोड़े जाने से ऐशबाग और बालागंज जलकल से होने वाली पेयजल आपूर्ति दूषित थी। पानी में झाग और बदबू आ रही थी। दो कौड़ी का निकला सवा करोड़ का पंप, पुराने इलाके में गहराया जल संकट- सामने आई ये खामिया यह भी पढ़ें संतोषी माता मंदिर कुंडरी में पानी पीने योग्य नहीं : बीते एक माह से कुंडरी रकाबगंज संतोषी माता मंदिर और आसपास क्षेत्र के लोग सीवर का बदबूदार पानी पीने को मजबूर हैं। हाल यह है कि सुबह और शाम को लोग पानी के लिए दूरदराज लगी टंकियों और हैंडपंप से पीने के लिए पानी ढोने को मजबूर हैं। आलम यह है कि नल खोलते ही सीवर का बदबूदार पानी आने लगता है। शिवम अग्रवाल बताते हैं कि यहा पाइप लाइन क्षतिग्रस्त है जैसे ही पानी की आपूर्ति शुरू होती है। सीवर का गंदा पानी आने लगता है। यह रोज की समस्या है। पहले सुपरवाइजर रामकुमार सिंह आकर इसे साफ करा देते थे। अब यहा कोई झाकने नहीं आता है। करीब महीने भर से यह समस्या बनी हुई है। शिकायतों के बाद भी इस ओर किसी भी जिम्मेदार ने आने की जहमत नहीं उठायी है। अश्रि्वनी साहू बताते हैं कि डयूटी से आते ही पहले पानी ढोना शुरू किया जाता है उसके बाद अन्य काम। इसके स्थायी हल की बात कहते हुए आने वाले सुपरवाइजर इस्टीमेट बना इसे पूरी तरह दुरुस्त कराने का आश्वासन देते हैं, लेकिन बरसों पुरानी इस समस्या का आज तक स्थायी हल नहीं निकला है। राजाजीपुरम में दो माह से हो रही है दूषित जलापूर्ति : गोमती नदी का गंदा पानी तो दूषित जलापूर्ति का कारण है ही लेकिन राजाजीपुरम में दो माह से गंदा पानी नलों से आ रहा है। पानी में इतनी अधिक बदबू है, जिससे लगा रहा है कि उसमे सीवर मिल रहा है। जलकल के अभियंताओं से शिकायत के बाद भी कोई सुधार होता नहीं दिख रहा है। राजाजीपुरम में ई-3947 व आसपास के घरों में दो माह से गंदा पानी नलों से आ रहा है। स्थानीय निवासी संगीता रस्तोगी ने बताया कि दो माह से गंदा पानी नल से आ रहा है। पानी पीना तो दूर दूसरे काम भी नहीं हो पा रहे हैं। इंदारा मतलब बड़ा कुआ : पतली लखौरी ईंटों से बने इंदारा कुएं ऐसे बड़े कुएं होते थे, जिनमें चार-पाच गरारी होती हैं। एक बार में पाच-छह लोग एक साथ पानी भर सकते थे। यह कहना है इतिहासविद योगेश प्रवीन का। वह बताते हैं कि गौसनगर में शिवाला के पास भी एक इंदारा कुआ था जो अब सूख चुका है। वह कहते हैं कि पुराने शहर में ऐसे बहुत से कुएं थे। इनके नाम से मुहल्लों के नाम तक पड़े जैसे लाल कुआ, छाछी कुआ, कंकड़ कुआ, घैला कुआ, भोलानाथ कुआ आदि। यहा हैं इंदारा कुएं : छोटा इमामबाड़े के पीछे चरक कुआ, मोहिनीपुरवा, हुसैनगंज, ऐशबाग पीले कालोनी, आइटी कालोनी ऐशबाग, राजकीय आइटीआइ अलीगंज, छपरतल्ला बड़ा चादगंज, डालीगंज इक्का स्टैंड, बरोलिया मनकामेश्वर मंदिर वार्ड, खदरा, कुम्हारन टोला, ठाकुर द्वारा, हसनगंज।

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