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खौफनाकः ज्वालामुखी से निकलता है मौत का लावा

खौलते-दहकते शोलों ने क़रीब महीने भर से अमेरिका के हवाई और ग्वाटेमाला को दहला रखा है. रह-रह कर फूटते ज्वालामुखी और इनसे निकलते लावे की नदियां अपने रास्ते में आनेवाली हर चीज़ को खाक करती आगे बढ़ रही हैं. मरने वालों की तादद लगातार बढ़ रही है. हालांकि इन शोलों ने अपने अंदर से कई सवाल भी बाहर उगले हैं. सवाल ये है कि आखिर ज़मीन के अंदर धधकती आग कहां से आती है? ज़मीन के नीचे मौजूद पत्थर किन हालात में आग का दरिया बन जाती हैं? ज्वालामुखी का ज्वाला आखिर कितना गर्म होता है. बहते लावे का तापमान कितना होता होगा? आग का दरिया और खौफनाक मंजर रह-रह कर उबलते और ज़मीन पर बहते शोले की तस्वीरें जितनी ख़ौफ़नाक हैं. उतनी ही दिलकश भी. पिघलते शोले की दिलकश तस्वीरें हर बार हैरान करती हैं. वजह ये कि पत्थर जैसी सख़्त और बेजान चीज़ अपने अंदर पैदा हुई गर्मी से यूं आग के दरिया में तब्दील हो सकती है, ये देख कर और जान कर भी इस पर आसानी से यकीन नहीं होता. क्योंकि आज तक आप और हम अपने आस-पास सचमुच जिन पत्थरों को देखते आए हैं, वो बेहद कठोर, भारी और सख्त होते हैं. कुछ इतने सख्त कि जब किसी सख्त चीज़ की मिसाल भी दी जाती है, तो ज़िक्र पत्थरों का ही होता है. कितनी होती है लावे की तपिश लेकिन 2,120 तापमान पर पिघलते लावे की कहानी ही कुछ और है. ये सख्त तो नहीं, लेकिन गर्म इतनी है कि अपने रास्ते में आनेवाले हर चीज़ का नामो-निशान मिटा दे. गर्म लावे के इसी मिज़ाज को समझने के लिए हाल ही में वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे प्रयोग किए जिनके नतीजों ने खुद इन वैज्ञानिकों के साथ-साथ पूरी दुनिया को भरमा दिया. इन प्रयोगों की पूरी सच्चाई जानने से पहले समझ लेते हैं कि पिघलते लावे की असली तपिश आख़िर होती कितनी है और ये हमारे आस-पास मौजूद चीज़ों के मुकाबले आखिर कितना ज़्यादा गर्म है. बर्फ़ का पिघलना 32 डिग्री तापमान यानी फॉरेनहाइट पर बर्फ पिघलना शुरु होती है. सबसे पहले बर्फ़ के पिघलते टुकड़े को देखिए. रेफ्रिजरेटर से निकालने के चंद मिनटों के अंदर ही बर्फ़ तेज़ी से पिघलने लगती है और धीरे-धीरे पानी में तब्दील हो जाती है. जानते हैं उस वक्त यहां का तापमान कितना होता है? महज़ 32 डिग्री. 32 डिग्री की इस गर्मी में इंसान आराम से रह सकता है. चॉकेलट का पिघलना अब बारी चॉकलेट की है. आम तौर पर चॉकलेट 50 डिग्री तापमान तक अपनी शेप यानी आकार में रहती है. लेकिन जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती जाती है, चॉकलेट भी पिघलने लगती है. लेकिन पूरी तरह पिघलने के लिए चॉकलेट को भी 90 डिग्री तापमान की गर्मी की दरकार होती है. बहता लावा, तबाही का मंजर ज्वालामुखी से निकलते, पिघलते और बहते लावे को आख़िर इस रूप में आने के लिए कितनी गर्मी की ज़रूरत होती होगी? ये जानना ही अपने-आप में किसी अजूबे से कम नहीं है. क्योंकि ये तापमान है 2,120 डिग्री फॉरेनहाइट या फिर कई बार उससे भी ज़्यादा. पिघलते लावे की तस्वीरें इसका अहसास तो कराती ही हैं, लेकिन लावे के साथ-साथ पिघलते लोहे की इन तस्वीरों को देख कर भी आप इस गर्मी को समझ सकते हैं. क्योंकि आम तौर पर लोहे को पिघलने के लिए भी 2,000 डिग्री फॉरेनहाइट से ज़्यादा की गर्मी की ज़रूरी होती है. अमेरिकी वैज्ञानिकों के प्रयोग वैसे यूनाइटेड स्टेट जियोलॉजिकल सर्वे की माने तो कई बार लावा 570 डिग्री फॉरेनहाइट पर भी ज़मीन के नीचे से बाहर निकलने लगता है. लेकिन हैरानी भरे तरीक़े से अपने धीरे-धीरे बहने और पूरी रफ्तार से चलने के दौरान इसकी गर्मी में कई गुना ज़्यादा इज़ाफ़ा हो जाता है. उदाहरण के लिए धीरे-धीरे बहते इस लावे का तापमान 895 डिग्री फॉरेनहाइट, जबकि सौ मील की रफ्तार से बहते लावे की इस नदी का तापमान 2,120 डिग्री फॉरेनहाइट तक हो सकता है. जिसके आस-पास फटकना भी खुद को राख में तब्दील कर लेने वाली बात है. लेकिन फिर भी कुछ अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अपनी जान पर खेल कर हाल में इस लावे को लेकर जो प्रयोग किए हैं, उसकी तस्वीरें भी दिमाग़ घुमा देने वाली हैं. लावे में आई-फ़ोन वैज्ञानिकों ने धीरे-धीरे बहते इस लावे की गर्मी का अंदाजा लगाने के लिए एक आई फ़ोन को ही इसके हवाले कर दिया. नतीजा क्या हुआ, ये आपके सामने है. देखते ही देखते आईफ़ोन में आग लग गई, वैज्ञानिकों ने कुछ देर के लिए उसे निकाला भी, लेकिन अगली बार जब ये लावे की चपेट में आया तो इसे राख बनते देर नहीं लगी. लावे में कैन्ड फूड आई फ़ोन के बाद बारी कैन्ड फूड के एक डिब्बे की थी. डिब्बा लावे में क्या गया, कुछ ऐसे गायब हुआ कि उसका कोई नामो-निशान ही नहीं बचा. अब ज़रा सोचिए उन मकानों, दुकानों, गाड़ियों या फिर इंसानों और जानवरों की, जो ऐसे लावे की चपेट में आते होंगे. पिघलता और बहता लावा उनका क्या हाल करता होगा. यही करामात है शोलों से निकले इस लावे की. जो इंसान को खौफ से भर देती है.

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