उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के शासनकाल में 2014 में मची अंधेरगर्दी अब सामने आ गई है। नियम-कानून को इस तरह दरकिनार किया गया कि चपरासी व चौकीदार को उपनिदेशक के पद पर प्रोन्नत करने में अधिकारियों को गुरेज नहीं था। अब मामला सामने आने पर स्थिति बड़ी असहज हो गई है।
प्रदेश में कल तक जो व्यक्ति अपने विभाग में अफसर की कुर्सी पर बैठ रहा हो, अब उसे वहीं पर चपरासी का काम करना पड़े तो उसकी मनोदशा को समझा जा सकता है। विडंबना है कि इस स्थिति को वे हुक्मरान अफसर नहीं समझते, जिन्हें न नियम-कानूनों से खेलने से गुरेज है और न ही किसी के भी मान-सम्मान के छीछालेदर से परहेज है।
प्रदेश में व्यवस्था की इस विडंबना का ताजा उदाहरण सूचना एवं जनसंपर्क विभाग से सामने आया है। क्षेत्रीय प्रचार संगठन के तहत जिला सूचना कार्यालय बरेली में चपरासी के रूप में सेवारत नरसिंह, फीरोजाबाद में चौकीदार के पद पर तैनात दयाशंकर, मथुरा के सिनेमा ऑपरेटर कम प्रचार सहायक विनोद कुमार शर्मा और भदोही में सिनेमा ऑपरेटर कम प्रचार सहायक के रूप में सेवारत अनिल कुमार सिंह को उन्हीं के दफ्तर में 2014 में सेवा अवधि के आधार पर अपर जिला सूचना अधिकारी बना दिया गया।
इस अंधेरगर्दी का मामला जब इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा, तब बात सामने आई कि सपा शासनकाल में हुई यह पदोन्नतियां नियम विरुद्ध थीं, क्योंकि यह पद सीधी भर्ती से ही भरे जा सकते हैं।
संबंधित नियमावली में इस तरह पदोन्नति किए जाने की व्यवस्था ही नहीं है। ऐसे में चारों अधिकारियों को उनके पुराने मूल पद पर भेज दिया गया है। सूचना निदेशक शिशिर का कहना है कि उच्च न्यायालय के आदेश पर चारों कर्मियों को मूल पद पर प्रत्यावर्तित किया गया है।