शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा 27 दिसंबर को दसवें पातशाह के साहिबजादों के शहीदी दिवस के दौरान ‘मातमी बिगुल’ बजाने के फैसले को गुरमति मर्यादा के खिलाफ बताया है।
धामी ने कहा कि श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह की शहादत दुख का प्रतीक नहीं है बल्कि चढ़दी कला का प्रतीक है। हक, सत्य और धर्म की खातिर खुद को बलिदान करने का फैसला करके साहिबजादों ने दुनिया के धार्मिक इतिहास में एक अनूठी और अद्वितीय मिसाल पैदा की। हालांकि साहिबजादों की उम्र कम थी लेकिन सिख धर्म के प्रति उनका दृढ़ संकल्प अधेड़ व्यक्तियों से कम नहीं था।
धामी ने कहा कि मुख्यमंत्री भगवंत मान को सिख इतिहास और सिद्धांतों की भावना को नजरंदाज नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इतिहास इस बात का गवाह है कि साहिबजादों ने पांचवें पातशाह श्री गुरु अर्जन देव और नौवें पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के नक्शेकदम पर चलते हुए शहादत दीं। दसवें पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी साहिबजादों की शहादत पर भजन गाकर पंथ को चढ़दी कला का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि साहिबजादों ने लालच और भय की परवाह किए बगैर मुगल शासकों को बड़ी चुनौती दी। सिख इतिहास के शहीद पंथ के लिए प्रेरणा स्रोत हैं और रोजाना की अरदास में उन्हें याद करने से पंथ को शक्ति और नेतृत्व मिलता है।
धामी ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा इन शहादतों को दु:ख और शोक की घटना के रूप में उठाना सिख इतिहास और गुरमति परंपरा के अनुरूप बिल्कुल भी नहीं है। भगवंत मान का फैसला साहिबजादों की शहादत के संबंध में पूरी तरह गलत है। उन्होंने सीएम से अपील की है कि वे सिख इतिहास के आलोक में साहिबजादों के प्रति श्रद्धा और सम्मान दिखाएं और गुरमत की भावना के खिलाफ कोई भी नया कार्यक्रम शुरू करने की भूल न करें।