
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि शराब की दुकानों को खोल दिए जाने से जो भीड़ उमड़ी है, उसमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो पा रहा है.
इसलिए, सभी दुकानों को बंद कर दिया जाए. इस पर कोर्ट ने कहा, “सरकार और स्थानीय प्रशासन ने सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर दिशा निर्देश जारी किए हैं. दुकानदार बाहर खड़ा होकर नहीं देख सकता है कि सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पूरी तरह से पालन हो रहा है या नहीं. अगर कहीं इसका उल्लंघन हो रहा है, तो इसे देखना प्रशासन का काम है. इसकी शिकायत प्रशासन को की जा सकती है.”
याचिकाकर्ता ने एक बार फिर अपनी दलील को दोहराया. लेकिन कोर्ट ने कहा, “इस तरह की याचिकाएं सिर्फ पब्लिसिटी के लिए दाखिल की जाती हैं. इन्हें सुनना सिर्फ समय की बर्बादी है.
हम आपके ऊपर ऐसी याचिका दायर करने के लिए 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाते हैं.” थोड़ी ही देर में आइटम नंबर 8 के लिए एक और पेटीशनर इन पर्सन पेश हुए.
गौतम सिंह नाम के याचिकाकर्ता से कोर्ट ने कहा, “हमने अभी-अभी ऐसी ही एक याचिका को खारिज किया है. “इस पर याचिकाकर्ता ने कहा, “मैं शराब की दुकानों को बंद करने की मांग नहीं कर रहा. लेकिन इनकी बिक्री पर कोर्ट को दिशा निर्देश जारी करना चाहिए.”
जजों ने इस याचिकाकर्ता को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा हमने पिछली याचिका में भी कहा था कि इस तरह के मामले बिना किसी ठोस आधार के सिर्फ पब्लिसिटी के लिए दाखिल कर दिए जाते हैं.
बिक्री को लेकर दिशा निर्देश जारी करना सरकार का काम है और वह ऐसा कर भी रही है. कोर्ट सरकार की भूमिका नहीं निभा सकता. हम इस याचिका को खारिज करते हैं. आपके ऊपर भी 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाया जाता है.
शराब की बिक्री पर सुप्रीम कोर्ट पहुंची तमिलनाडु सरकार को आज इस मामले में राहत मिल गई. राज्य सरकार ने मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें दुकानों पर शराब की बिक्री बंद करने को कहा गया था.
हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि राज्य में शराब के सिर्फ ऑनलाइन बिक्री हो सकती है. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची तमिलनाडु सरकार की दलील थी कि हाई कोर्ट इस तरह का निर्देश नहीं दे सकता है. राज्य सरकार को भी लोगों के स्वास्थ्य की चिंता है. वहां पूरे इंतजाम किए जा रहे हैं कि शराब की दुकानों पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो सके.
तमिलनाडु सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा, “ऑनलाइन तरीके से एक बार में सिर्फ 2 बोतल शराब बेची जा सकती है. हर व्यक्ति के लिए ऑनलाइन शराब खरीद पाना संभव भी नहीं है.
ऐसे में इस बात की आशंका बनी रहेगी कि राज्य के लोग शराब हासिल करने के लिए पड़ोसी राज्यों में जाएं. इससे कोरोना का अंदेशा बढ़ जाएगा. हाई कोर्ट ने बिना इन बातों पर गौर किए आदेश जारी कर दिया है.”
हाई कोर्ट में इस मामले में याचिका दाखिल करने वाले याचिकाकर्ता की तरफ से वकील पीवी योगेश्वरन ने कहा, “शराब पीना लोगों का मौलिक अधिकार नहीं है.
सरकार सिर्फ अपना राजस्व बढ़ाने के लिए लोगों के स्वास्थ्य का नुकसान कर रही है.” इसका विरोध करते हुए तमिलनाडु सरकार के वकील ने एक बार फिर दोहराया कि सरकार याचिकाकर्ता के मुकाबले लोगों के स्वास्थ्य को लेकर ज्यादा चिंता करती है.
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मामले में नोटिस जारी कर दिया और हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी. इस तरह तमिलनाडु में शराब की दुकानें फिलहाल खुली रखने का रास्ता साफ हो गया है. मामले की अगली सुनवाई 4 हफ्ते बाद होगी.
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