भोपाल गैस त्रासदी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार से कहा कि उपचारात्मक याचिका को मुकदमे या रिव्यू का रिव्यू याचिका के रूप में नहीं लिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया है कि केंद्र सरकार 1984 भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को भुगतान के लिए अतिरिक्त मुआवजा देने के लिए यूनियन कार्बाइड का इंतजार क्यों कर रहा है? कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि कल्याणकारी राज्य होने के नाते केंद्र सरकार को खुद आगे आना चाहिए और लोगों को मुआवजा देना चाहिए।
मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को यूनियन कार्बाइड से मुआवजा दिलाने की कोशिश करने के बजाय केंद्र से खुद ज्यादा मुआवजा देने की बात कही। कोर्ट ने कहा कि,”किसी और की जेब में झांकना और पैसे निकालना बहुत आसान है। अपनी खुद की पॉकेट देखो और पैसा दो और फिर देखो कि क्या तुम उनकी (यूनियन कार्बाइड की) जेब में झांक सकते हो या नहीं … यदि एक कल्याणकारी समाज के रूप में, आप (सरकार) इतने चिंतित हो कि आपको ज्यादा भुगतान करना चाहिए था, तो आपको पहले खुद ऐसा करना चाहिए” न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली एक संविधान पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा, “आप कल्याणकारी राज्य के सिद्धांतों का आनंद लेना चाहते हैं, लेकिन सोच रहे हैं कि सारा मुआवजा यूनियन कार्बाइड से लिया जाना चाहिए।
भोपाल गैस त्रासदी मामले में मुआवजे को लेकर सुनवाई चल रही थी। सुप्रीम कोर्ट की बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, एएस ओका, विक्रम नाथ और जेके माहेश्वरी भी शामिल थे, ने 2010 में केंद्र द्वारा दायर उपचारात्मक याचिका पर सुनवाई जारी रखी, जिसमें पीड़ितों के लिए 7,400 करोड़ रुपये से ज्यादा के अतिरिक्त मुआवजे की मांग की गई थी।
इस मामले में वेंकटरणि ने कहा,”हम यूटोपिया में नहीं रहते…सरकार ने वही किया जो उसने सोचा कि उस समय लोगों के लिए सबसे अच्छा था जिन्हें सहायता की आवश्यकता थी, इसमें कोई बदनामी नहीं बल्कि श्रेय लेने की बात है कि उन्होंने लोगों को तुरंत राहत पहुंचाने के लिए कुछ निर्णय लिया… हर विवाद या त्रासदी को कभी न कभी बंद करना ही पड़ता है। उस समय (जब 1989 में सरकार द्वारा समझौता किया गया था), तब इस मामले को बंद करने का विचार किया गया था। एक पुनर्विचार याचिका भी लाई गई जो 1991 में समाप्त हो गई। अब क्या हम बार-बार वही घाव खोल सकते हैं?”