‘पबजी मोबाइल’ बच्चों की पढ़ाई प्राभावित कर रहा है। क्रेज इस कदर है कि बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। जा भी रहे तो क्लास बंक कर रहे या होमवर्क छोड़ देते हैं। यह हम नहीं बल्कि मंडलीय मनोविज्ञान केंद्र के अध्ययन में पता चला। पैरेंट्स और बच्चों की काउंसिलिंग में पता चला है कि यह गेम खेलने वाले 90 फीसदी बच्चों ने स्कूल जाना ही बंद कर दिया। बचे हुए दस फीसदी शेड्यूल टाइमिंग में तो पढ़ते हैं लेकिन बाकी समय मोबाइल पर लगे रहते हैं।
पिछले कई महीनों से अभिभावक मंडलीय मनोविज्ञान केंद्र पर फोन कर मदद मांग रहे थे। ज्यादातर की शिकायत थी कि उनके बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है। बच्चा स्कूल नहीं जाने के बहाने खोजता है, किसी तरह चला भी गया तो लौटने के बाद मोबाइल में लग जाता है। शिकायतें बढ़ीं तो मंडलीय मनोविज्ञान केंद्र ने सैंपल सर्वे शुरू किया। इसके तहत 200 पैरेंट्स से बात की गई।
100 अभिभावकों को बच्चों के साथ काउसिलिंग सेंटर बुलाया गया। जब उनसे बात की गई तो पता चला कि सभी पबजी खेलने के शौकीन हैं। अब हालत यह है कि गेम को छोड़ नहीं पा रहे हैं। मंडलीय मनोवैज्ञानिक डॉ. एलके सिंह कहते हैं कि मोबाइल फोन को लेकर पैरेंट्स की शिकायतें आने लगीं तो उनका अध्ययन किया गया। यह बात सामने आई कि सबसे ज्यादा व्यसन (एडिक्शन) पबजी गेम के प्रति है। इससे पहले ब्लूव्हेल गेम के प्रति क्रेज बढ़ा था लेकिन उसकी प्रकृति दूसरी थी। इस पर रोक के बाद स्थिति बेहतर हो सकी।
कैसे शुरू हुआ अध्ययन : डॉ. एलके सिंह के मुताबिक पबजी गेम नया नहीं है लेकिन इसके प्रति क्रेज अब काफी बढ़ गया है। पिछले छह महीने में अभिभावकों व अन्य के जब फोन आने शुरू हुए तो यह बात सामने आई कि गेम के प्रति बच्चों का रुझान इतना ज्यादा बढ़ रहा है कि वे स्कूल छोड़ने लगे हैं। जब बच्चों से बात की गई तो पता चला कि ज्यादातर मामले पबजी गेम से जुड़े हुए
आठवीं से 12वीं तक के बच्चे ज्यादा : सैंपल सर्वे में पता चला कि ज्यादातर बच्चे 8वीं से 12वीं के बीच पढ़ने वाले हैं। काउंसिलिंग के दौरान बच्चों ने माना कि वह पबजी गेम खेल रहे हैं। गेम में आगे का टारगेट उन्हें खेलने के लिए मजबूर करता है।
क्या है पबजी
पबजी मोबाइल एक शूटर बैटल रॉयल गेम है, जिसमें 100 खिलाड़ी एक बैटलग्राउंड में छोड़े जाते हैं और वे मरने तक लड़ते हैं। 100 लोगों में आखिर तक जिंदा रहने वाला खिलाड़ी गेम का विजेता बनता है।
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गेम का बच्चों पर असर
– नींद की समस्या होना
– समाज से कटना
– एकाग्रता में कमी, भूलने की बीमारी होना
– गेम से आक्रामकता बढ़ रही
– बच्चों के स्वभाव में चिड़चिड़ापन
– रचनात्मक कार्य करने को समय की कमी
– आंखों की रोशनी प्रभावित हो रही।
– लगातार बैठे रहने से मोटापा, ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसी समस्याएं बढ़ रहीं
इस तरह बच्चों की करें पहचान
– बच्चा गुमसुम और लोगों से अलग-अलग (एकाकी) रहता हो
– बच्चे में गुस्सा कम आता हो लेकिन चिड़चिड़ापन हो
– पढ़ाई में सामान्य हो लेकिन खेलकूद में सबसे कमजोर
– शारीरिक दुबले-पतले और मौसमी बीमारियों से ग्रसित रहने वाले
कैसे छुड़ाएं गेम की आदत
अगर बच्चे मोबाइल इस्तेमाल कर रहे हैं तो इस बात पर नजर रखी जाए कि वह किन चीजों में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। एलके सिंह कहते हैं कि अगर बच्चा मोबाइल में गेम या पबजी का लती हो रहा है तो उसे समझाएं। धीरे-धीरे उसकी एनर्जी बांटने की कोशिश करें। उसे अन्य कामों में लगाएं। गेम को डिलीट कर दें। इसके बाद उसकी निगरानी करते रहें। उसके साथ अपनापन दिखाने का प्रयास करें। डांटे-फटकारें नहीं बल्कि उसे लगातार इसके नुकसान के बारे में समझाएं।
जरूरी बातें
– 200 पैरेंट्स से मंडलीय मनोविज्ञान केंद्र के काउंसलरों ने बात की
– 100 पैरेंट्स को बच्चों के साथ काउसिलिंग सेंटर बुलाया गया
– 90% बच्चों ने माना कि वह स्कूल न जाकर पबजी खेलते हैं
– 10 फीसदी बच्चों ने माना कि स्कूल टाइम के बाद पढ़ाई नहीं करते
– 40 स्कूलों के सभी बच्चे 8वीं से 12वीं के बीच पढ़ने वाले