पंजाब का जनादेश: सत्ता के खिलाफ गुबार से दिग्गज दरकिनार, चार मंत्री हारे

बदली सियासी बयार में चुनाव लड़ी कांग्रेस पर पंजाब ने फिर भरोसा जताया। सरहदी सूबे में जेल से चुनाव लड़े खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह और इंदिरा गांधी के हत्यारे के बेटे पोते सरबजीत सिंह खालसा की जीत में भी कई संदेश छिपे हैं। बतौर प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरे मान सरकार के पांच में से चार मंत्री चुनाव हार गए। तीनों विधायक भी लोकसभा का इम्तिहान पास नहीं कर सके।

पंजाब के जनादेश ने इस बार कई संदेश दिए हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजों में सत्ता के खिलाफ लोगों का आक्रोश झलका है। चाहे वो केंद्र में भाजपा हो या सूबे में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी, जनता ने दोनों को खारिज कर दिया है। 

ढाई दशक बाद सूबे में अलग-अलग चुनाव लड़े भाजपा और शिअद दोनों को नुकसान झेलना पड़ा है। किसानों का सार्वजनिक विरोध झेल रही भाजपा को कोई सीट नहीं मिली, लेकिन उसका वोट शेयर बढ़ा है। उधर, सियासी फायदे के लिए पाला बदलने वाले नेताओं को जनता ने इस बार दरकिनार कर दिया। मोदी का असर भी पंजाब में नहीं हुआ। प्रधानमंत्री ने चार चुनावी रैलियां कीं, लेकिन एक भी जगह कमल नहीं खिला सके।

2019 में आठ सीटें जीती थी कांग्रेस
पंजाब में सत्तासीन रहते 2019 में कांग्रेस ने लोकसभा की 13 में से आठ सीटें जीतीं थीं। इस बार चुनाव से पहले पार्टी के कई नेताओं ने पाला बदल लिया। पार्टी के दो सांसद भाजपा की टिकट पर कांग्रेस के खिलाफ खड़े हो गए। पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर व सुनील जाखड़ जैसे नेता भाजपा के अगुआ थे। सिद्धू ने भी चुनाव से किनारा कर लिया। इसके बावजूद कांग्रेस की झोली में 7 सीटें डालकर जनता ने पार्टी पर भरोसा जताया है। पंजाब में 1999 के बाद यह पहला मौका है, जब किसी दल को लगातार दूसरी बार लोकसभा चुनाव में बढ़त मिली हो। 

आप को झटका
पंजाब से संसद का रास्ता तलाश रही आम आदमी पार्टी को भी चुनाव में झटका लगा है। साल 2019 में एक सीट जीतने वाली आप को इस बार तीन सीटें मिलीं हैं, लेकिन ये नतीजे उसके दावे के अनुरूप नहीं हैं। आप ने पांच मंत्रियों व तीन विधायकों को चुनावी अखाड़े में उतारा था। सीएम के गृह क्षेत्र संगरूर में मीत हेयर को छोड़कर सभी मंत्री व विधायक चुनाव हार गए। भाजपा को बीते चुनाव में दो सीटें मिलीं थीं, तमाम दावों के बावजूद पार्टी पंजाब में एक भी सीट नहीं जीत पाई।

प्रकाश सिंह बादल के बिना उतरी अकाली दल राह भटकी
पंजाब की सियासत के बाबा बोहड़ कहे जाने वाले प्रकाश बादल के बिना पहले चुनाव में उतरी शिअद को महज एक सीट मिली है। बठिंडा में हरसिमरत कौर जीत गईं, लेकिन बादल के गढ़ रहे फिरोजपुर को शिअद नहीं बचा सकी। 

दल बदलुओं को जनता ने नकारा
पाला बदल दूसरे दल से चुनाव मैदान में उतरे सात सांसद, विधायक व पूर्व विधायकों में छह को जनता ने खारिज कर दिया। पटियाला में न कैप्टन की पत्नी परनीत कौर जीत सकीं, न ही लुधियाना में रवनीत बिट्टू। कांग्रेस के इन दोनों सांसदों ने भाजपा के टिकट पर चुनावी ताल ठोकी थी। टिकट मिलने के बाद भाजपा में गए आप सांसद सुशील रिंकू भी जालंधर से हार गए। राहुल गांधी ने चार रैलियां की थीं, इनमें तीन जगह कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। सीएम भगवंत मान और केजरीवाल के तमाम प्रयासों के बावजूद आप को आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिली।

किसान आंदोलन का दिखा असर
एमएसपी की कानूनी गारंटी के लिए करीब चार महीने से चल रहे किसान आंदोलन का भी चुनाव में असर दिखा है। भाजपा प्रत्याशियों को किसानों का सार्वजनिक विरोध झेलना पड़ा। प्रदेश में सत्तासीन आप के खिलाफ भी किसानों में आक्रोश था। वादे के बावजूद हर महिला को एक हजार रुपये न मिलना भी आप पर भारी पड़ा। पंथक मुद्दों की भी चुनाव नतीजों में झलक दिखती है। बढ़ता नशा, कानून-व्यवस्था व बेअदबी और बंदी सिखों की रिहाई को भी इस चुनाव में मुद्दा बनाया गया।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com