डाक्टरों ने पहली बार गर्भावस्था के दौरान एक महिला के गर्भाशय में हुए छेद का सफलतापूर्वक इलाज कर मां बच्चे दोनों को बचा लिया। आंध्र प्रदेश की निवासी 22 वर्षीय महिला को गर्भावस्था के छठे महीने में गंभीर पेट दर्द के बाद बेंगलुरु के रेनबो चिल्ड्रेंस हास्पिटल में भर्ती कराया गया था। उनकी नाड़ी तेज चल रही थी। ब्लड प्रेशर बहुत कम था।
डॉक्टरों की टीम ने लैप्रोस्कोपी की
जांच से पता चला कि महिला के पेट में काफी खून इकट्ठा हो गया था। गर्भाशय में रक्तस्राव भी हो रहा था। गर्भाशय में छेद और ओवेरियन टार्सन (आंतरिक रक्तस्राव और उसकी गर्भाशय की दीवार को क्षति) का भी पता चला। हालांकि, बच्चे के दिल की धड़कन ठीक थी। बच्चे और मां को बचाने के लिए डॉ. मेघना रेड्डी के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने लैप्रोस्कोपी की। लैप्रोस्कोपी पेट के अंदर के अंगों की जांच करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सर्जिकल प्रक्रिया है।
टीम ने पाया कि मरीज के ऊपरी गर्भाशय में छेद था। हालांकि छिद्र क्यों बना इसका कारण स्पष्ट नहीं हो सका। यह महिला की पहली गर्भावस्था थी। उनकी पहले कोई सर्जरी नहीं हुई थी। आमतौर पर गर्भाशय के छिद्र के मामलों में गर्भपात कर दिया जाता है, लेकिन डाक्टरों ने पहली बार छेद का इलाज करने के लिए लैप्रोस्कोपी और फेटोस्कोपिक के साथ-साथ लेप्रोस्कोपिक टांके लगाने का निर्णय लिया।
मां और बच्चा दोनों ठीक
डॉक्टरों ने रक्तस्राव को नियंत्रित कर मरीज का इलाज किया जिससे महिला और उसके बच्चे के लिए आशा की किरण जगी। महिला को 37वें सप्ताह में प्रसव पीड़ा शुरू हुई। उन्होंने सामान्य प्रसव के जरिये बच्चे को जन्म दिया। मां और बच्चा दोनों ठीक हैं। यह मामला अमेरिकन जर्नल आफ आब्स्टेट्रिक्स एंड गायनेकोलाजी में प्रकाशित हुआ है।