नई दिल्ली: शेयरधारकों को सलाह देने वाली कंपनी आईआईएएस ने ओएनजीसी द्वारा एचपीसीएल में सरकार की हिस्सेदारी खरीदने के मामले में शेयरधारकों की मंजूरी लेने से छूट की मांग पर सवाल उठाया है. कंपनी का कहना है कि सार्वजनिक वोट के संदर्भ में इस प्रकार की ढिलाई ठीक नहीं है. ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन (ओएनजीसी) ने हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) में सरकार की 51.11 प्रतिशत हिस्सेदारी 36,916 करोड़ रुपए में खरीदी है. आईआईएएस ने कहा कि 20 जनवरी को अधिग्रहण मूल्य 473.97 रुपए प्रति शेयर को अंतिम रूप दिया गया और सौदा 31 जनवरी को पूरा हुआ. अब ओएनजीसी शेयरधारकों से इसे मंजूरी देने को कह रही है. यह खरीद संबंधित पक्षों के बीच लेन-देन के अंतर्गत आती है क्योंकि सरकार की ओएनजीसी में बहुलांश हिस्सेदारी है और वह अपनी एचपीसीएल में हिस्सेदारी बेच रही हैं.शेयरधारकों की मंजूरी नहीं ली गई- IIAS
आईआईएएस ने कहा कि कंपनी कानून की धारा 188 के अनुसार अगर कोई कंपनी संबंधित पक्षों के बीच सौदा करती है, उसके लिये शेयरधारकों की पूर्व मंजूरी लेनी होती है. इस मामले में यह मंजूरी नहीं ली गयी. कानून तीन महीने में मंजूरी प्राप्त करने की अनुमति देता है. कंपनी ने कहा, ‘‘कारोबार के दौरान नियमित लेन-देन में यह बात समझ में आती है. लेकिन हिस्सेदारी खरीद में कानूनी तथा परिचालन संबंधित जटिलताओं को देखते हुए एक बेहतर कामकाज की व्यवस्था के तहत ओएनजीसी को शेयरधारकों की मंजूरी के बिना इस प्रकार के सौदे से बचना चाहिए.’’
कंपनी ने शेयरधारकों को दिये नोटिस में यह दलील दी है कि कीमत से जुड़े़ संवेदनशील सौदों में पहले से मंजूरी लेना व्यवहारिक नहीं है. इस पर आईआईएस ने कहा, ‘‘सौदा पूरा होने में कई महीने का समय लगा और सौदा पूरा करने को लेकर कोई हड़बड़ी नहीं थी. ऐसे में यह बात समझ से परे है.’’
कंपनी कानून तथा सेबी (एलओडीआर) नियमन, 2015 लोक उपक्रमों को उन मामलों में शेयरधारकों से मंजूरी से छूट प्राप्त है जहां संबंधित पक्षों के बीच सौदे के तहत सार्वजनिक क्षेत्र की दूसरी कंपनी के बीच सौदा हुआ. लेकिन सरकार तथा सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी के बीच सौदों को लेकर इस प्रकार की छूट नहीं है.