मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में साफ कर दिया कि राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग का रिजर्वेशन 14 फीसद ही रहेगा। इसी के साथ अनारक्षित वर्ग की बड़ी जीत हुई। अधिवक्ता आदित्य संघी ने अवगत कराया कि अब विवाद का पटाक्षेप हो गया है। नियमानुसार 50 फीसद से अधिक कुल आरक्षण अवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट का भी न्यायदृष्टांत है। इसीलिये हाई कोर्ट ने समस्या हल कर दी। उल्लेखनीय है कि विगत सुनवाई में हाई कार्ट ने 27 फीसद ओबीसी आरक्षण पर रोक बरकरार रखी थी। साथ ही ईडब्ल्यूएस आरक्षण की समस्त भर्तियां विचाराधीन याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन कर दी थी। ओबीसी आरक्षण का अंतरिम आदेश भो मॉडिफाइड भी किया था। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसद आरक्षण की संवैधानिकता व 10 फीसद इकोनॉमिक वीकर सेक्शन, ईडब्ल्यूएस आरक्षण की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली समस्त याचिकाओं की एक साथ सुनवाई हुई।
इस दौरान सभी पक्षों ने मैराथन बहस की। जोरदार बहस हुई। मुख्य न्यायमूर्ति मोहम्मद रफीक व जस्टिस विजय शुक्ला की युगलपीठ द्वारा पूर्व में 19 मार्च 2019 व 31 जनवरी 2020 को जारी अंतरिम आदेशों को मॉडिफाइड करते हुए व्यवस्था दी थी कि ओबीसी की समस्त भर्ती प्रक्रिया 14 फीसद आरक्षण के हिसाब से की जाएं और ओबीसी का 13 फीसद आरक्षण रिजर्व रखा जाए। 50 फीसद आरक्षण की अधिकता के बिंदु पर चुनौती देने वाली समस्त 31 याचिकाओं में, ओबीसी के छात्र एवं छात्राओं सहित अपाक्स संगठन ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन पिछड़ा वर्ग संयुक्त मोर्चा ओबीसी एससी एसटी एकता मंच आदि कई सामाजिक संगठनों की ओर से हस्तक्षेप याचिका दायर की गई।
अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, उदय कुमार साहू, विष्णु पटेल ने पैरवी की। अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर द्वारा ईडब्ल्यूएस आरक्षण की संवैधानिकता को भी चुनौती दी गई है। उक्त याचिका में उच्च न्यायालय द्वारा अंतरिम आदेश पारित कर आदेशित किया था कि प्रदेश में की जाने वाली ईडब्ल्यूएस आरक्षण के अंतर्गत समस्त भर्तियां याचिका क्रमांक 20293 के निर्णय के अधीन होंगी प्रकरणों की आगामी सुनवाई 10 अगस्त को निर्धारित की गई थी। मंगलवार को सुनवाई में नए दिशा-निर्देश सम्भव थे। अंततः वैसा ही हुआ।