मध्य प्रदेश की राजगढ़ विधानसभा सीट का अपना अजब ही किस्सा रहा है, यहां पर या तो कोई भी उम्मीदवार लगातार दो बार नहीं जीत पाता और अगर कोई विधायक दूसरी बार जीत दर्ज करता है तो उसकी पार्टी की सरकार बदल जाती है. पिछले 13 विधानसभा चुनावों में यहां से जीते अधिकांश उम्मीदवार विपक्षी विधायक के रूप में ही काम करते नज़र आए हैं, क्योंकि यहां से उनके जीतने के बाद राज्य में सत्ता परिवर्तन हो जाता है.
वर्ष 1957 से अब तक राजगढ़ सीट पर यही स्थिति रही है, इसी कारण अक्सर राजनीतिक दल हर चुनाव के बाद अपना प्रत्याशी बदल देते हैं. यदि वे प्रत्याशी नहीं बदलते तो जनता विधायक बदल देती है, यहां सिर्फ दो नेता ही लगातार दो बार जीते, लेकिन उनकी दूसरी जीत के साथ ही राज्य की सत्ता पलट गई. इनमें जनता पार्टी के जमनालाल गुप्ता और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के रघुनंदन शर्मा शामिल हैं.
वर्ष 1977 में यहां से जमनालाल गुप्ता अपना पहला विधानसभा चुनाव जीते थे, तो करीब ढाई साल बाद ही राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था, इसके बाद 1980 के चुनाव में वे फिर जीते तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई और वे विपक्षी विधायक बन गए. इसी प्रकार रघुनंदन शर्मा जब 1990 में अपना पहला चुनाव जीते तो भाजपा की सरकार थी, लेकिन जब 1993 में वे लगातार दूसरी बार चुनाव जीते तो राज्य में कांग्रेस सत्ता में आ गई. राजगढ़ के इतिहास से साफ़ होता है कि ये सीट विधानसभा चुनाव में क्या मायने रखती है.