Madhya Pradesh में चल रहे सियासी घमासान के बीच मुख्यमंत्री Kamal Nath ने इस्तीफे की घोषणा कर दी है। हर पल रंग बदल रही मध्यप्रदेश की सियासत में गुरुवार आधी रात को नया मोड़ आया था और तभी तय हो गया था कि कमल नाथ चंद घंटों के सीएम हैं। विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने कांग्रेस के बागी एवं सिंधिया समर्थक 16 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार कर लिए थे। इसके पहले छह मंत्रियों को बर्खास्त कर विधानसभा से उनके इस्तीफे भी मंजूर किए जा चुके थे। इस तरह सरकार को संकट में डालने वाले कांग्रेस के सभी 22 विधायकों के इस्तीफे मंजूर कर लिए गए थे।
विधानसभा अध्यक्ष प्रजापति ने मीडिया को बताया कि बेंगलुरु में मौजूद इन 16 विधायकों को नोटिस जारी किए गए, लेकिन वे उपस्थित नहीं हुए। प्रजापति ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर मुझे ही पार्टी बना दिया गया। उल्लेखनीय है कि बेंगलुरु में दो दिन से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इन विधायकों को मनाने का अंतिम प्रयास कर रहे थे। शाम को सुप्रीम कोर्ट का फ्लोर टेस्ट कराने संबंधी फैसला आ गया था। इसके बाद देर रात विधानसभा अध्यक्ष ने यह इस्तीफा मंजूर करने का फैसला सुना दिया।
क्या होता Floor Test में
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- विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए 103 सदस्यों का समर्थन की जरूत होती, क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष के अलावा 205 विधानसभा मतदान में हिस्सा लेते।
- कांग्रेस के 22 बागी विधानसभा के इस्तीफे स्वीकार करने के बाद दल की विधानसभा में संख्या 91 (अध्यक्ष को मिलाकर 92) रह गई थी।
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- निर्दलीय, बसपा और सपा के सात विधायकों का समर्थन कमल नाथ सरकार को बरकरार रहता है तो सदस्य संख्या 99 होती।
- भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी लगातार मुख्यमंत्री कमल नाथ के संपर्क में हैं, इसलिए माना जा सकता था कि वे मतदान में सरकार के साथ रहेंगे। ऐसे में सरकार के पास विधायकों की संख्या 100 हो जाती।
- थ सरकार को बहुमत साबित करने के लिए भाजपा के त्रिपाठी के अलावा चार अन्य विधायकों के समर्थन की दरकार होती।
- भाजपा दावा कर रही थी कि अन्य में से तीन विधायक उसके साथ हैं।
व्हिप जारी कर चुके थे सभी दल
समाजवादी पार्टी ने अपने एक मात्र विधायक राजेश शुक्ला को कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने के लिए व्हिप जारी किया था। भाजपा व्हिप जारी कर चुकी थी। ऐसी सूरत में पार्टी लाइन के विपरीत मतदान करने वाले विधायकों की सदस्यता जा सकती थी।
कांग्रेस विधायक दल की ओर से भी व्हिप जारी किया जा चुका था। पार्टी निर्णय के बाहर जाने पर विधायकों की सदस्यता जा सकती थी।
विधानसभा अध्यक्ष शक्ति परीक्षण के दौरान दोनों दलों को समान मत मिलने की सूरत में ही मतदान करते थे।