हरियाणा में विधानसभा चुनाव सिर पर है। वहीं कांग्रेस आलाकमान ने यह साफ कर दिया है कि हरियाणा के आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा कोई भी नहीं होगा और बहुमत आने पर कुर्सी का फैसला विधायकों की राय से होगा। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष दीपक बाबरिया व पार्टी की वरिष्ठ नेत्री सैलजा ने भी पार्टी के अपने-अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं तक पार्टी का यही सन्देश पहुंचा दिया हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने भी इस पर कोई एतराज जाहिर नहीं किया है। उनके समर्थकों का मानना है कि 2019 की तरह इस बार भी दो तिहाई विधायक हुड्डा खेमे के ही जीत कर आने वाले हैं।
पिछले दो विधानसभा चुनावों की तरह इस बार भी कांग्रेस सामूहिक नेतृत्व को चुनावी जिम्मेदारी सौंपेगी। यह चुनावी नतीजों से पता चलेगा कि चुनाव की कमान एक नेता के हाथों में सौंपना बेहतर था या फिर सामुहिक नेतृत्व ज्यादा व्यवहारिक रहा। सियासत में कुछ नहीं पता होता कि बहुमत आने के बाद भी कुर्सी को लेकर कब क्या उलटफेर हो जाए। पार्टी के इस फैसले की एक बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि कांग्रेस में कम से कम आधा दर्जन ऐसे दिग्गज नेता हैं, जो अपना कद मुख्यमंत्री से कम नहीं मानते और वे किसी की चौधर मानने को तैयार नहीं है। फिलहाल पार्टी मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदारों में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा व पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव सांसद सैलजा हैं।
राहुल गांधी खुद हरियाणा विधानसभा चुनावों पर रखेंगे नजर
दरअसल पार्टी में दोनों नेताओं का सियासी कद बहुत बड़ा है। सैलजा जहां पांच बार सांसद व केंद्र सरकार में मंत्री रहीं। वहीं हुड्डा चार बार सांसद व दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। दोनों नेताओं की दिल्ली दरबार में भी अच्छी खासी पहुंच है। पिछले दस सालों से सत्ता से बाहर रहने के चलते कांग्रेस आलाकमान चाहता है कि किसी भी कीमत पर इस बार यहां पार्टी की सत्ता में वापसी हो। अभी हाल में राहुल गांधी व मलिकार्जुन खड़गे ने सूबे के आला कांग्रेसी नेताओं की बैठक बुलाकर कोई बीच का रास्ता निकलने की कोशिश भी की, लेकिन उसे कोई ऐसी मुगली घुट्टी नहीं मिल पायी जो दोनों खेमों का हाजमा दुरुस्त कर सके। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि इस बार राहुल गांधी खुद हरियाणा विधानसभा चुनावों पर नजर रखेंगे।
सियासत में चेहरे की राजनीति को सीधे-सीधे नकारा नहीं जा सकता। मोदी के चेहरे पर भाजपा को तीन बार केंद्र की सत्ता मिली। हरियाणा के ज्यादातर चुनावों में भले ही मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित न किया गया हो, लेकिन चेहरे आगे जरूर रहे। भले ही ज्यादातर सियासी दलों ने पहले से किसी को मुख्यमंत्री घोषित न किया, लेकिन लोगों ने देवी लाल, भजन लाल, बंसी लाल व मनोहर लाल को भावी मुख्यमंत्री मान कर ही वोट डाले। पार्टी ने फिलहाल न तो हुड्डा को और न ही सैलजा को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है, लेकिन कार्यकर्ता उनके नाम पर ही पसीना बहाएंगे।
सियासी क्षेत्रों का कहना है कि चुनाव में किसी एक चेहरे को बागडोर सौंपने का कई बार फायदा भी होता है और नुकसान भी। यदि किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया जाए तो अपनी साख बचाने के लिए उसे मजबूरन सबको साथ लेकर चलना पड़ता है जबकि सामूहिक नेतृव में जीत का श्रेय व हार का ठीकरा हर कोई एक दूसरे पर थोपा जाता है। इसका नुकसान यह है कि उसके बराबर के कद के नेता उसे हीरो नहीं बनने देना चाहते, भले ही उससे पार्टी को नुकसान क्यों न पहुंचता हो।
सीएम को लेकर भाजपा ने खोले अपने पत्ते
अपने भावी सीएम को लेकर भाजपा ने पत्ते खोल दिए हैं। मुख्यमंत्री नायब सैनी को ही अपना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया है। अमित शाह के ऐलान से हो सकता है कि पार्टी के कुछ दिग्गज खुश न हों, लेकिन एक केडरबेस पार्टी होने के नाते किसी ने जुर्रत नहीं की कि शाह के फैसले पर कोई सवाल खड़ा करें। जबकि कांग्रेस में इतनी आसानी से इतना बड़ा फैसला थोपा नहीं जा सकता। क्षेत्रीय दलों को अपने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि आम तौर पर क्षेत्रीय दलों के सुप्रीमो खुद ही अपनी पार्टी के मुख्यमंत्री के चेहरे हैं।
हुड्डा प्रदेश कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा
यदि कांग्रेस को सत्ता में लौटना है तो उसे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के चेहरे को आगे रखकर विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए। वह 36 विरादरी के नेता होने के साथ-साथ सूबे की सियासत में सबसे बड़ा जाट चेहरा भी हैं। 2019 में मोदी की लहर होने के बाबजूद प्रदेश में कांग्रेस 31 सीटें जीतने में कामयाब हुई। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की पांच सीटों पर जीत में चार सीटें उनके हिस्से की है। वहीं हरियाणा में कांग्रेस की नैया पार लगा सकते हैं।