चंबल की बर्बादी का सिलसिला बदस्तूर जारी है। माफिया के दबाव में प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट ने निर्देशों को भी ताक पर रख दिया। अगर निर्देशों का पालन होता तो अवैध खनन पर लगाम लग जाती। प्रशासन तमाशबीन बना हुआ है और माफिया अपने काम को अंजाम दे रहा है।
राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में रेत से लदे सैकड़ों वाहन इस खुले खेल के गवाह हैं। अवैध खनन और परिवहन को रोकने हाईकोर्ट ने जो निर्देश दिए थे, उन्हें कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित टास्क फोर्स ने नहीं माना। टास्क फोर्स में पुलिस, वन, माइनिंग व परिवहन विभाग की संयुक्त टीम को जिम्मा सौंपा गया था। यही नहीं, निर्देशों के पालन की कागजी भरपाई कर हाईकोर्ट को गुमराह भी किया गया।
नाम की टास्क फोर्स, नहीं हो निर्देश पर अमल
5 मई 2016 को हाईकोर्ट में पेश पालन प्रतिवेदन में कहा गया कि टास्क फोर्स निर्देशों का पालन कर रही है। लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं है। नतीजतन, रेत का अवैध खनन चरम पर जा पहुंचा है। प्रशासन की पालन प्रतिवेदन रिपोर्ट में भी हाईकोर्ट ने कई कमियां बताई थीं। हाल ही में डिप्टी रेंजर की माफिया ने ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या कर दी थी। इसके बावजूद टास्क फोर्स की करीब आधा दर्जन प्रमुख कमियां उजागर हुईं।
अभी भी अवैध रास्ते
हाई कोर्ट ने निर्देश दिया था कि चंबल के किनारे बनाए गए अवैध रास्तों को खोद कर नष्ट किया जाए। शासन ने कोर्ट को बताया कि सभी रास्तों को चिन्हित कर नष्ट कर दिया गया है। सभी रास्ते चालू हैं। हाईकोर्ट से शासन ने कहा कि न्यायालय के आदेश पर हाइवे पर पांच जगहों पर कैमरे लगाए गए हैं। न्यायालय ने इसे अपर्याप्त बताते हुए संख्या बढ़ाने को कहा। लेकिन संख्या बढ़ाने की जगह कैमरों की संख्या घटी दी गई। मुरैना वन नाके पर डिप्टी रेंजर की हत्या के समय एक ही कैमरा मौजूद था। उसका भी डायरेक्शन खराब था।
नाकों पर कहां है एएसएफ ?
कोर्ट ने चंबल के खनन वाले घाटों पर एसएएफ तैनात करने के निर्देश दिए थे। रेत परिवहन रोकने के लिए भी गाइड लाइन दी थी। डिप्टी रेंजर की हत्या वाले दिन यदि एसएएफ नाके पर होती तो यह घटना न घटती। इस दौरान यह भी पता चला कि हाई कोर्ट के आदेश पर एसएएफ के 132 लोगों की जो एक कंपनी मुरैना भेजी गई थी, उसमें से 50 लोग ट्रेनिंग के नाम पर हटा लिए गए थे।
केवल नाम की पेट्रोलिंग
कोर्ट ने नाव से और पैदल पेट्रोलिंग के निर्देश भी दिए। सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि वन विभाग दो बोटों से पेट्रोलिंग कर रहा है। होमगार्ड को भी बोट दी गई है। पैदल भी पेट्रोलिंग हो रही है। जबकि सचाई यह है कि होमगार्ड के पास पेट्रोलिंग के लिए कोई बोट तक नहीं है।
नहीं हो रही सैटेलाइट से निगरानी
कोर्ट ने चंबल में खनन की निगरानी सैटेलाइट के जरिये किए जाने के निर्देश दिए थे। सरकार ने उसे बताया कि सैटेलाइट इमेजनरी के लिए कार्रवाई शुरू कर दी गई है। हकीकत यह है कि चंबल में सिर्फ एक बार ड्रोन से निगरानी का ट्रायल हुआ। इसके बाद सैटेलाइट से निगरानी की शुरुआत अब तक नहीं हो पाई है।
नहीं बन सका नो-व्हीकल जोन
हाई कोर्ट ने नदी को नो-व्हीकल जोन बनाने के निर्देश दिए थे। जिस पर सरकार ने कोर्ट को बताया कि वन विभाग ने नदी के तट क्षेत्र में लोडिंग चार पहिया वाहनों को बंद कर दिया है। घाट से एक किमी के दायरे में बोर्ड लगाए गए हैं। मुनादी कराई गई है। जबकि हकीकत यह है कि नदी के घाट पर जेसीबी और ट्रैक्टरों से खनन हो रहा है, जिसके लाइव वीडियो लोगों ने सोशल मीडिया पर डाले हैं। साल 2017 व 18 में नो-व्हीकल जोन में वाहनों पर जुर्माने की कार्रवाई हुई ही नहीं।