गौरवपूर्ण इतिहास वाले 220 वर्ष पुराने 41 आयुध कारखानों के कंपनी में तब्दील होने के बाद अब रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) भी निजीकरण की राह पर जा सकता है। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ ‘एआईडीईएफ’ के महासचिव सी. श्रीकुमार के मुताबिक, केंद्र सरकार की ऐसी मंशा दिखाई पड़ रही है कि आयुध कारखानों के ‘निगमीकरण’ और ईएमई में ‘जीओसीओ’ मॉडल लाने के बाद अब ‘डीआरडीओ’ पर नजर है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन की लैब को पहले ही निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया है। हमारे देश के लोगों के पैसे से स्थापित की गई लैब की तमाम सुविधाओं का इस्तेमाल, प्राइवेट क्षेत्र करने लगा है। सरकार ने पूर्व मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन की अध्यक्षता में 9 सदस्यीय कमेटी गठित की है। इस कमेटी को डीआरडीओ की कायापलट करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। श्रीकुमार ने डीआरडीओ की हाईपावर कमेटी (प्रो. विजया राघवन कमेटी) को सौंपे ज्ञापन में कहा है कि
डीआरडीओ की हाई पावर कमेटी को सौंपा ज्ञापन
अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ ‘एआईडीईएफ’ ने डीआरडीओ की हाई पावर कमेटी (प्रो. विजया राघवन कमेटी) को ज्ञापन सौंपा है। इस ज्ञापन को 31 अक्तूबर को हैदराबाद में हुई एआईडीईएफ लीडरशिप की बैठक में तैयार किया गया था। एआईडीईएफ द्वारा इसे लेकर एक विशेष सर्कुलर भी जारी किया गया, जिसे डीआरडीओ के सभी कर्मियों, विशेषकर लैब स्टाफ तक पहुंचाया जा रहा है। एआईडीईएफ ने डीआरडीओ के उस निर्णय का भी विरोध किया है, जिसमें डीआरडीओ की हाईपावर कमेटी की बैठक को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए करने की बात कही गई है। इस बैठक में प्रत्येक फेडरेशन का एक प्रतिनिधि शामिल हो सकता है। श्रीकुमार के मुताबिक, हाई पावर कमेटी की बैठक फिजिकली होनी चाहिए और उसमें एआईडीईएफ के कम से कम पांच प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए।
डीआरडीओ का बजट बढ़ाने की सिफारिश
यह ज्ञापन पांच नवंबर को डीआरडीओ चेयरमैन को भी प्रेषित किया गया है। उसमें कहा गया है कि डीआरडीओ, एक महत्वपूर्ण स्ट्रैटेजिक डिफेंस रिसर्च एवं डेवलपमेंट इंडस्ट्री है। मौजूदा समय में डीआरडीओ को पूरी तरह से सरकार के साथ रहना चाहिए। डिफेंस की स्थायी संसदीय समिति ने डीआरडीओ का बजट बढ़ाने की सिफारिश की थी। डीआरडीओ को अपना रिसर्च प्रोग्राम ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना चाहिए। इसके लिए डीआरडीओ में वर्कफोर्स से लेकर वैज्ञानिक तक के पद नियमित तौर पर भरे जाएं। डीआरडीओ में निजीकरण और आउटसोर्सिंग पॉलिसी, राष्ट्रीय सुरक्षा एवं रक्षा क्षेत्र की तैयारियों के हित में नहीं है। डीआरडीओ के पास छोटी-बड़ी 52 प्रयोगशालाएं हैं। सरकार ने जिन 108 आइटम के आउटसोर्स की बात कही है, वे डीआरडीओ के तहत विकसित किए जा सकते हैं। कॉरपोरेट सेक्टर का, डीआरडीओ जैसे अहम स्ट्रैटेजिक डिफेंस रिसर्च आर्गेनाइजेशन में शामिल होना, खतरनाक है।
डीआरडीओ को लेकर गठित 3 कमेटियों का किया जिक्र
सरकार ने निर्णय लिया है कि डीआरडीओ द्वारा विकसित तकनीक को आयुद्ध कारखानों और डिफेंस पब्लिक सेक्टर के साथ साझा न किया जाए, लेकिन वह कॉरपोरेट सेक्टर को प्रदान कर दी जाए। सरकार ने 2022-23 और 2023-24 के लिए डीआरडीओ का 25 फीसदी बजट, प्राइवेट सेक्टर के लिए रखा है। एआईडीईएफ महासचिव ने अपने ज्ञापन में डीआरडीओ की भूमिका को लेकर विभिन्न सरकारों द्वारा गठित आयोगों का जिक्र भी किया है। इनमें प्रो. पी राव कमेटी (2007), प्रो. राम गोपाल राव कमेटी (2020) और प्रो. के विजया राघवन कमेटी (2023) शामिल है। इन कमेटियों ने क्या कहा और उस पर एआईडीईएफ का क्या सुझाव था, ज्ञापन में यह उल्लेख किया गया है। डीआरडीओ में मैनपावर की कमी को लेकर एआईडीईएफ पिछले 12 वर्षों से आवाज उठा रहा है, लेकिन कभी भी सरकार या डीआरडीओ मुख्यालय की तरफ से सकारात्मक जवाब नहीं मिल सका। एआईडीईएफ ने अपने सुझाव में उन बातों का जिक्र किया है कि डीआरडीओ को हाई टेलेंटेड वैज्ञानिक और स्टाफ कैसे मुहैया कराया जाए। श्रीकुमार के मुताबिक, डीआरडीओ को निजीकरण की तरफ न ले जाए, बल्कि उसे सरकारी हाथों में मजबूत करने की कवायद शुरू हो।
डीआरडीओ को भी इंडस्ट्री की परिभाषा से छूट
श्रीकुमार के अनुसार, इसरो और एटोमिक एनर्जी की तरह नए लेबर कोड प्रभावी होने के बाद डीआरडीओ को भी इंडस्ट्री की परिभाषा से छूट प्रदान कर दी जाएगी। के विजय राघवन की अध्यक्षता में जो 9 सदस्यीय कमेटी गठित की गई है, वह प्रधानमंत्री के निर्देश पर काम करती है। इस कमेटी को जो जिम्मेदारी दी गई है, उसमें रक्षा विभाग (आरएंडडी) एवं डीआरडीओ का पुनर्गठन और भूमिका को फिर से परिभाषित करना, शामिल है। इसके अलावा इनका आपसी और शैक्षणिक समुदाय व इंडस्ट्री के साथ संबंध तय किया जाएगा। शैक्षणिक समुदाय, एमएसएमई और कटिंग एज टेक्नालॉजी के क्षेत्र में स्टार्टअप की सहभागिता निर्धारित होगी।
वर्क फोर्स खत्म करने की रणनीति
डीआरडीओ को प्राइवेट कंपनी की तरफ ले जाने की कोशिश हो रही है। वर्क फोर्स को खत्म करने की रणनीति बन रही है। विदेश से माल ला रहे हैं। उसकी मदद से जो उपकरण तैयार करना है, उसकी तकनीक विकसित करने के लिए कहा गया है। डेवलपमेंट प्रोटोटाइप बनाना है। उसे आर्मी को टेस्ट के लिए देना है। ये सब काम तो दस साल पहले तक हमारे तकनीकी वर्कर करते रहे हैं। अब ये सब काम, धीरे-धीरे प्राइवेट क्षेत्र के पास जा रहा है। श्रीकुमार ने बताया कि तकनीकी एक्सपर्ट कम हो रहे हैं। बिना किसी निवेश के डीआरडीओ की लैब सुविधा को निजी क्षेत्र के लिए खोला जा रहा है। पहले इस संगठन के ढांचे में बदलाव होगा, उसके बाद उसे निगम बनाया जा सकता है। उसके बाद पूरी तरह से वह संगठन निजी हाथों में चला जाएगा।