केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) देश में नक्सल रोधी अभियान चलाने वाला एक प्रमुख बल है. इसी कड़ी में सीआरपीएफ ने एक विशेष पहल करते हुए झारखंड में आदिवासियों एवं स्थानीय लोगों की भाषाएं, रीति-रिवाज और परंपराएं अपने कर्मियों को सिखाना शुरू किया है. इस कदम का उद्देश्य नक्सलियों के खिलाफ अहम खुफिया सूचना जुटाना और स्थानीय लोगों से मेलजोल बढ़ाना है. गौरतलब है कि सीआरपीएफ ने आदिवासी बहुल राज्य में वामपंथी उग्रवादियों या माओवादियों के खिलाफ अभियान चलाने के लिए 20 बटालियनें (करीब 20,000 जवान) तैनात कर रखी हैं.
‘कैप्सूल कोर्स’ के तहत सीखेंगे आदिवासी जीवनशैली की जानकारी
इस कार्यक्रम के तहत कम से कम 1200 जवानों को ”कैप्सूल कोर्स” के तहत आदिवासियों की जीवनशैली के बारे में मूलभूत जानकारी देने का फैसला किया गया है. उन्हें इस पाठ्यक्रम के तहत स्थानीय इलाके में साप्ताहिक हाटों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भी विशेष यात्रा कराई जाएगी.
हर बटालियन के 60 कर्मियों को दिया जाएगा प्रशिक्षण
झारखंड में सीआरपीएफ के महानिरीक्षक (ऑपरेशन) संजय ए लठकर ने बताया, ”हम राज्य के दूर दराज के स्थानों पर तैनात हैं, जहां जवान या अधिकारी को इलाके के आदिवासियों और स्थानीय लोगों से नियमित रूप से बातचीत करनी होती है. स्थानीय भाषा की जानकारी के अभाव में सूचना जुटा पाना और स्थानीय लोगों के लिए कल्याणकारी कार्य कर पाना बहुत मुश्किल होता है. इसलिए इस कदम के बारे में सोचा गया.” उन्होंने बताया कि शुरूआत में हर बटालियन के करीब 60 कर्मियों को ”हो, संथाली, नागपुरी, कुरूख, सद्री, भोजपुरी” और अन्य भाषाएं सिखाने तथा आदिवासियों के रीति रिवाज एवं परंपराओं का प्रशिक्षण देने का प्रस्ताव किया गया है.
प्रशिक्षण के बाद अपने साथी कर्मियों को भी देंगे प्रशिक्षण
उन्होंने बताया कि ये कर्मी अपनी इकाइयों में और भी कर्मियों को प्रशिक्षण देंगे. सुरक्षा बलों का मानना है कि वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों में नक्सल रोधी अभियानों में अधिकतम सफलता हासिल करने में स्थानीय भू-भाग की जानकारी के अलावा स्थानीय जानकारी का अभाव उनके समक्ष सबसे बड़ी बाधाओं में एक है. इस पहल को छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र एवं आंध्र प्रदेश में भी जल्द ही क्रियान्वित किया जाएगा.