दुनिया में कोरोना महामारी के सामने आने के बाद चीन ने वायरस के जेनेटिक कोड को जनवरी में ही उपलब्ध करा दिया था। इसके बाद कई कंपनियों और शैक्षिक संस्थानों में वैक्सीन तैयार करने की होड़ मच गई। यह महामारी दुनिया के लगभग सभी देशों को अपनी चपेट में ले चुकी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार, 160 से अधिक संभावित वैक्सीन विभिन्न चरणों में है। ऐसे में इस महामारी ने इतिहास की सबसे बड़ी वैक्सीन की दौड़ को जन्म दे दिया है। आइए जानते हैं कि क्यों व्यापक पैमाने पर वैक्सीन बनाने की कोशिश की जा रही है और संक्रामक रोगों और महामारियों के दौरान कितनी संभावित वैक्सीन मैदान में थीं।
इसलिए चल रहा कई वैक्सीन पर काम
2003 में सार्स दो दर्जन से अधिक देशों में फैल गया था। इससे करीब 8,000 से अधिक लोग संक्रमित हुए थे, जिनमें से 770 से अधिक की मृत्यु हो गई। वहीं 2009 में स्वाइन फ्लू महामारी 200 से अधिक देशों में फैली और आधिकारिक तौर पर करीब 18,500 लोग मारे गए। हालांकि कई अनुमान इससे कहीं ज्यादा हैं। इस महामारी में, एक दशक पुरानी तकनीक का उपयोग करके पहले वर्ष के भीतर ही वैक्सीन विकसित की गई थी। वहीं कोविड-19 महामारी के दौरान 200 से अधिक देशों ने संक्रमण की सूचना दी है। विशेषज्ञों के अनुसार, वैक्सीन खोजने का शुरुआत में काम करने वालों के लिए बहुत अधिक अवसर हैं, जिससे बड़ी आबादी प्रभावित है और महामारी के आर्थिक परिणाम देशों को प्रभावित कर रहे हैं।
नई तकनीकों पर भी आधारित संभावित वैक्सीन
वैश्विक स्तर पर फिलहाल 26 संभावित कोविड-19 वैक्सीन मानव परीक्षण के विभिन्न चरणों से गुजर रहे हैं। वहीं 139 अभी पशु परीक्षण तक पहुंचे और यह समझने की कोशिश में जुटे हैं कि क्या यह वैक्सीन मनुष्यों को दिये जाने के लिए सुरक्षित है? विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहली बार है जब किसी वैक्सीन बनाने को लेकर इतनी रुचि है। उनका मानना है कि डब्ल्यूएचओ द्वारा बताई गई संख्या से करीब तीन गुना अधिक वैक्सीन पर काम चल रहा होगा। कोविड-19 महामारी ने पिछले कुछ दशकों में वैक्सीन की सबसे बड़ी संख्या को आर्किषत किया है। वैक्सीन बनाने की कई कोशिशें पूर्व में आजमाई गई और परीक्षण की गई तकनीकों पर ही आधारित नहीं है, बल्कि ऐसी तकनीकों पर भी आधारित हैं जो अब से पहले कभी सामने नहीं आई थीं। जिनमें न्यूक्लिक एसिड और ब्लीडिंग एज जैसी तकनीक को भी शामिल किया गया है।
बड़ा बाजार भी कारण
देशों को लंबे समय तक लॉकडाउन के तहत रखने की अपनी आर्थिक लागत है, लेकिन पर्याप्त सुरक्षा के बिना इन्हें खोलना भी वित्तीय रूप से प्रभावित कर सकता है। कोविड-19 के लिए कहा जाता है कि करीब 60 फीसद आबादी को संक्रमण के प्रति प्रतिरक्षा हासिल करनी चाहिए। यदि यह स्वाभाविक होता है, तो समाज और अर्थव्यवस्था पर गंभीर दबाव के साथ बीमारियां और मौतें बहुत अधिक होंगी। विशेषज्ञों के अनुसार, प्रभावित क्षेत्र भी उम्मीदवारों की संख्या में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। वायरस के फैलने की संभावना अन्य वायरस की तुलना में अधिक है। इसलिए यह वैक्सीन निर्माता कंपनियों को न सिर्फ बड़ा बाजार बल्कि प्रभावित देशों में प्रवेश के लिए जगह भी देता है।
विकसित देश प्रभावित तो उम्मीद ज्यादा
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि विकसित देश किसी महामारी से प्रभावित होते हैं तो इसके समाधान के लिए तकनीकी विकास अक्सर तेजी से होता है। कई पश्चिमी देश इससे प्रभावित हैं। तुलनात्मक रूप से यदि आप टीबी और मलेरिया जैसे रोगों को देखें तो पाते हैं कि विकासशील देशों में इनकी वैक्सीन बनने में काफी लंबा वक्त लगा। कई कंपनियां महामारी में वैक्सीन बनाने को पूंजी जुटाने और नाम बनाने के अवसर के रूप में देख रही हैं।