मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने मातहत आने वाले सूचना विभाग की ‘सर्जरी’ एक महीने पहले ही करने की योजना बना ली थी लेकिन कुछ जरूरी योजनाओं की घोषणा और उसे लागू करने के चलते उन्हें ठहरना पड़ा. हाथरस मुद्दे पर जिस तरह से सरकार जनता के सामने अपनी बात रखने में विफल हुई इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कड़ा निर्णय लेना पड़ा. मुख्यमंत्री ने 2 अक्तूबर को गांधी जयंती की पूर्व संध्या में सूचना विभाग की ‘सफाई’ शुरू की. उन्होंने कोरोना महामारी के बीच अपने विभाग का बेहतर प्रदर्शन दिखाने वाले खादी एवं ग्रामोद्योग और एमएसएमई विभाग के अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल को सूचना विभाग की भी कमान सौंप दी.
काम करके दिखाने वाले अधिकारी की पहचाने रखने वाले नवनीत सहगल के लिए कारोना महामारी “आपदा में अवसर” लेकर आई. कोविड-19 के खिलाफ मुख्यमंत्री योगी की जंग में भी मध्यम, लघु और माइक्रो उद्योगों ने यूपी को सहारा दिया है. 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा हुए महज एक हफ्ता ही हुआ था कि देश भर में कोरोना संक्रमण के रोकथाम और इलाज में लगे डॉक्टरों और पैरामेडिकल कर्मचारियों के लिए जरूरी ‘पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट’ (पीपीई) किट की कमी महसूस होने लगी थी.
यूपी में भी कोरोना संक्रमण के मामले धीरे-धीरे बढ़ रहे थे. लखनऊ स्थित अपने सरकारी आवास पर मुख्यमंत्री योगी ने एक अप्रैल की सुबह करीब साढ़े दस बजे अपनी सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों की टीम-11 के बैठक में यूपी में ही पीपीई किट और वेंटीलेटर जैसे जरूरी उपकरणों के निर्माण की योजना बनाने को कहा. इसके बाद सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग एमएसएमई विभाग हरकत में आ गया. एमएसएसई विभाग के कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह और प्रमुख सचिव (वर्तमान में अपर मुख्य सचिव) नवनीत सहगल ने अन्य अधिकारियों के साथ बैठक करके योजना का खाका खींचा.
अगले दिन योजना की जानकारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दी गई. मुख्यमंत्री के बताए संशोधन किए गए. योगी आदित्यनाथ की अनुमति मिलते ही यूपी को पीपीई किट के निर्माण में आत्मनिर्भर बनाने की योजना को हकीकत में बदलने के प्रयास शुरू हो गए. नवनीत सहगल ने प्रदेश में काम कर रहे टेक्सटाइल से जुड़े उद्यमियों से संपर्क किया और उन्हें पीपीई किट निर्माण करने को प्रेरित किया.
मुख्यमंत्री योगी ने स्वयं ऐसे उद्यमियों से बात कर उन्हें सरकार से हर संभव मदद देने का भरोसा दिलाया. लॉकडाउन में इन फैक्ट्रियों में काम करने वाले श्रमिकों को उनके गांव से लाने की व्यवस्था हुई. युद्ध स्तर पर कच्चे माल का इंतजाम हुआ. सभी उद्यमियों को स्टैंडर्ड पीपीई किट बनाने का प्रोटोकॉल समझाया गया. सरकार की मेहनत रंग लाई और 5 अप्रैल को नोएडा, कानपुर और उन्नाव में आधा दर्जन टेक्सटाइल फैक्ट्रियों ने पीपीइ किट का उत्पादन शुरू किया.
आज यूपी में कुल 53 फैक्ट्रियों ने 50 हजार पीपीई किट का निर्माण रोज बनाने की क्षमता हासिल कर ली है. यूपी में कोविड के इलाज में लगे मेडिकल कॉलेज और अन्य अस्पतालों में बड़ी संख्या में प्रदेश में बनने वाली पीपीई किट का उपयोग हो रहा है. इसके अलावा केंद्र सरकार की संस्था ‘एचएलएल लाइफकेयर’ भी यूपी की फैक्ट्रियों से बड़ी संख्या में पीपीई खरीदकर अस्पतालों में सप्लाई कर रही है. इसके अलावा प्रदेश सरकार ने यूपी में वेंटीलेटर बनाने वाली नोएडा की एकमात्र इकाई को पुनर्संचालित करने में सहयोग किया है. यह इकाई अब रोज 300 वेंटीलेटर का उत्पादन की क्षमता हासिल कर पूरे देश में इसकी आपूर्ति कर रही है.
एमएसएमई ही नहीं अभी तक गुमनामी में रहने वाला खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग भी कोरोना संक्रमण के समय पूरी तरह सक्रिय दिखा. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 4 अप्रैल को लखनऊ के पांच कालीदास मार्ग स्थित सरकारी आवास पर अपने टीम-11 के अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे थे. बैठक में मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे प्रदेश की सभी जनता के बाहर निकलने पर मास्क पहनने की योजना पर काम करें. दिक्कत यह थी कि इतने सारे मास्क बाजार में कहां से आएंगे.
बैठक में मौजूद खादी विभाग के प्रमुख सचिव (अब अपर मुख्य सचिव) नवनीत सहगल ने छह लाख मीटर खादी का कपड़ा मास्क बनाने के लिए उपलब्ध करवाने की बात कही. मुख्ममंत्री को बात जंची और फौरन उन्होंने नवनीत सहगल और तत्कालीन प्रमुख सचिव ग्राम्य विकास मनोज कुमार सिंह को एक बैठक करके मास्क बनाने की कार्ययोजना तैयार करने को कहा.
पहली ही बैठक में देश में एक साथ 50 लाख से अधिक मास्क बनाने की महत्वाकांक्षी योजना हकीकत में उतर आई. ‘स्टेट रूरल लाइवलीहुड मिशन’ (एनआरएलएम) के दो लाख ‘सेल्फ हेल्फ ग्रुप’ को छह लाख मीटर खादी के कपड़े से मास्क बनाने का जिम्मा सौंपा गया. इस तरह ‘सेल्फ हेल्प ग्रुप’ के जरिए रिकार्ड 50 लाख मास्क बनाकर खादी को घर-घर पहुंचाने की योजना को अमलीजामा पहना दिया गया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना संकट के बीच 12 मई को लॉकडाउन चौथी बार बढ़ाने की घोषणा के साथ ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान” के लिए 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया था. प्रधानमंत्री के आर्थिक पैकेज की घोषणा के तुरंत बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एमएसएमई विभाग के मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह और तत्कालीन प्रमुख सचिव (अब अपर मुख्य सचिव) एमएसएमई नवनीत सहगल को आत्मनिर्भर भारत योजना का लाथ यूपी के उद्यमियों दिलाने के लिए युद्धस्तर पर कार्य करने का निर्देश दिया था. लोकभवन के सी ब्लॉक के पहले तल पर बैठने वाले एमएसएमई विभाग के अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल ने पूरी रात अपना दफ्तर खोलकर बैंक और उद्यमियों के बीच समन्वय स्थापित किया.
प्रधानमंत्री की घोषणा के महज 24 घंटे के भीतर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी के 56,754 एमएसएमई उद्यमियों को 2002.49 करोड़ रुपए के ऑनलाइन ऋण वितरित किए. इस प्रकार लॉकडाउन अवधि में उद्यमियों को इतनी बड़ी संख्या में ऋण वितरित करने वाला यूपी पहला राज्य बन गया.
उसी दिन 14 मई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोगों को रोजगार दिलाने के लिए ऑनलाइन ‘स्वरोजगार संगम’ कार्यक्रम का भी आयोजन किया. इसमें 56,754 एमएसएमई इकाईयों में करीब दो लाख से अधिक कामगारों को रोजगार के अवसर मुहैया कराए गए. एमएसएमई विभाग “ऑन एकाउंट इंटरप्राइज” और “इस्टैब्लिशमेंट” श्रेणी के उद्यमों में कम से कम एक व्यक्ति को रोजगार दिलाने की व्यवस्था कर कुल 90 लाख रोजगार करने की दिशा में भी कार्रवाई कर रहा है. एमएसएमई विभाग यूपी में अबतक 2 लाख 71 हजार 473 नई इकाइयों को 8.949 करोड़ रुपए से अधिक का ऋण बैंकों के सहयोग से वितरित करा चुका है.
सूचना विभाग के अपर मुख्य सचिव की ताजा जिम्मेदारी संभालने वाले नवनीत सहगल की पहचान उन अधिकारियों में है जो किसी भी विभाग में अपने ‘इनोवेशन’ से एक नई पटकथा लिख देते हैं. वर्ष 1963 में पंजाब के फरीदकोट में पैदा हुए नवनीत सहगल की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा हरियाणा में हुई क्योंकि इनके पिता यहीं नौकरी करते थे. अंबाला से दसवीं कक्षा पास करने के बाद सहगल ने भिवानी में रहकर इंटरमीडियट परीक्षा उत्तीर्ण की. वर्ष 1982 में 19 साल की उम्र में सहगल ने बीकॉम पास किया. ये सिविल सर्विस में जाना चाहते थे लेकिन उम्र नहीं हुई थी.
इसके बाद सहगल ने चार्टेड एकाउंटेंटशिप (सीए) कोर्स में दाखिला लिया. चंडीगढ़ में रहकर ‘चार्टेड एकाउंटेंट’ और ‘कंपनी सेक्रेटरीशिप’ दोनों का भी कोर्स करना शुरू किया. वर्ष 1984 में एकाउंटेंट के तौर पर सहगल ने पहली नौकरी शुरू की. दो साल बाद वर्ष 1986 में सीए कोर्स पूरा कर लिया. इसके अगले साल कंपनी सेकेटरीशिप का कोर्स भी पूरा कर लिया.
सीए करने के बाद वर्ष 1986 में सहगल ने प्रैक्टिस और साथ में सिविल सर्विसेज की तैयारी भी शुरू कर दी. बड़ी कंपनियों के कंसल्टेंट के तौर पर सहगल ने देश में कई नई फैक्ट्रियों की शुरुआत कराई. इनके ही प्रयासों से देश में पहली बार सेरेमिक टाइल्स फैक्ट्री रेवाड़ी में लगी. देश में पहली बार केन (शीतल पेय रखने के लिए) बनाने वाली फैक्ट्री ‘एशियन केन’ की स्थापना में बतौर कंसल्टेंट सहगल की महत्वपूर्ण भूमिका थी.
रुड़की में ‘मल्टी लेयर कोएक्सक्लूडेड फिल्म’ का प्लांट लगवाया. यह जर्मन मशीन थी जिससे पांच परतों वाली फिल्म का निर्माण किया गया जिसमें तरल पदार्थ काफी दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता था. यह लाइसेंस राज का दौर था. इस समय सहगल क्लाइंट को लाइसेंस दिलाने के लिए दिल्ली के उद्योग भवन के चक्कर लगाया करते थे.
पहले ही प्रयास में सहगल 1988 में सिविल सेवा चयनित हो गए. इन्हें यूपी कैडर मिला. प्रोबेशन पीरियड में इनकी तैनाती सहारनपुर में हुईँ. वर्ष 1990 में इनकी पहली पोस्टिंग एटा में हुई. उसके बाद एक वर्ष देहरादून में एसडीएम के पद पर तैनात रहे. इसी दौरान कुंभ मेला का आयोजन होने पर सहगल “हरिद्वार डेवलेपमेंट अथॉरिटी” में उपाध्यक्ष के पद पर तैनात हुए. वर्ष 1993-96 तक इन्होंने कानपुर में “यूपी फाइनेंशियल कार्पोरेशन’ में महाप्रबंधक की जिम्मेदारी संभाली. वर्ष 1996 में पत्नी की नियुक्ति लखनऊ के आर्किटेक्चर कॉलेज में होने के बाद सहगल भी लखनऊ आ गए.
इन्हें गृह विभाग में ज्वाइंट सेक्रेटरी पद पर तैनात किया गया. छह महीने गृह विभाग में रहने के बाद दो साल जौनपुर के जिलाधिकारी रहे. इसके बाद छह महीने सहकारिता विभाग में एडीशनल रजिस्ट्रार (बैंकिंग) पद पर रहे. यहां से एक साल तक गोंडा के जिलाधिकारी रहे. भाजपा सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इन्हें फैजाबाद का जिलाधिकारी बनाया. इस दौरान सहगल अयोध्या में रामजन्म भूमि से जुड़े संतों के काफी करीब आ गए.
कल्याण सिंह के बाद रामप्रकाश गुप्ता के मुख्यमंत्री बनने पर नवनीत सहगल को निदेशक “स्टेट अरबन डेवलेपमेंट अथॉरिटी” (सूडा) की कुर्सी मिली. वर्ष 2002 में अयोध्या में शिलादान कार्यक्रम को शांतिपूर्वक संपन्न कराने के लिए सहगल खास तौर पर फैजाबाद भेजे गए थे. वर्ष 2002 में बसपा-भाजपा की मिलीजुली सरकार बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने सहगल को लखनऊ का जिलाधिकारी बनाया.
वर्ष 2004 में मायावती की सरकार जाने और बसपा की घोर विरोधी पार्टी सपा के अध्यक्ष मुलायम सिंह की सरकार बनने के बाद भी सहगल आठ महीने तक लखनऊ के जिलाधिकारी बने रहे. इसी बीच इनका प्रमोशन हो गया और यह साइंस ऐंड टेक्नोलाजी विभाग में सचिव पद पर तैनात हुए. इसके बाद यूपी में बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में पहली बार काफी काम शुरू हुआ. यहां से सहगल केंद्र सरकार में साल पर निदेशक पंचायती राज के पद पर तैनात रहे. इसके बाद कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे अखिलेश दास के निजी सचिव बने.
वर्ष 2002 में यूपी में बसपा की सरकार बनने पर केंद्र से पांच आइएएस अफसर यूपी लौटे जिनमें से एक सहगल भी थे. हालांकि इसका नुकसान सहगल को अब उठाना पड़ रहा है क्योंकि ये दो साल ही केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर थे और अब आगे यह केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए ‘इम्पैनल्ड’ नहीं हो सकते हैं. एडीशन सेक्रेटरी और सेक्रेटरी के लिए जरूरी है कि वह तीन साल केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर रहे हों. बसपा सरकार में सहगल कई विभागों पावर कार्पोरेशन, जल निगम, यूपी इंडस्ट्रियल डेवलेपमेंट कार्पोरेशन के चेयरमैन रहे. यही वह समय था जब यूपी में बिजली के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य शुरू हुए.
देश की सबसे लंबी हाइटेंशन पावर ट्रांसमिशन लाइन अनपरा से उन्नाव तक बिछाई गई. यूपी का सबसे बड़ा 800 केवीए का सबस्टेशन उन्नाव में स्थापित किया गया. बिजली की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के सबसे पहले ठोस प्रयास सहगल के पावर कार्पोरेशन में रहते हुए ही हुए. जब इन्होंने पावर कार्पोरेशन की जिम्मेदारी संभाली थी तबतक यूपी की बिजली उत्पादन क्षमता महज छह हजार मेगावाट थी. सहगल ने आने वाले समय में 35 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य लेकर यूपी में टाटा, रिलायंस, जेपी, नैवेली लिग्नाइट कार्पोरेशन, एनटीपीसी के बिजली घर लगवाए.
बसपा की सरकार के बाद 2012 में यूपी में सपा की सरकार बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सहगल को हाशिए पर भेज दिया. सहगल धर्मार्थ कार्य विभाग जैसे महत्वहीन विभाग के प्रमुख सचिव बने. सहगल ने श्रवण यात्रा शुरू करके धर्मार्थ कार्य विभाग को प्रदेश में एक अलग पहचान दिलाई. इसी दौरान सहगल ने काशी विश्वनाथ कॉरीडोर बनाने की योजना का खाका खींचा. इन्होंने ही मंदिर के आसपास के भवनों को अधिग्रहीत करने की कार्ययोजना भी बनाई. वर्ष 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सहगल को उत्तर प्रदेश इंडस्ट्रियल डेवलेपमेंट अथॉरिटी (यूपीडा) का सीईओ बनाकर अपने ड्रीम प्रोजेक्ट आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे को पूरा करने का जिम्मा सौंपा.
सहगल को जिस वक्त यह जिम्मेदारी सौंपी उस वक्त एक इंच जमीन भी आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे के लिए नहीं खरीदी गई थी. टेंडर प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट में मुकदमे में फंसी थी. सहगल ने सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में से मुकदमे वापस करवाए. छह महीने के भीतर आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे की सारी साढ़े सात हजार एकड़ जमीन खरीदी गई. अपने काम से सहगल सरकार का विश्वास जीतते गए और तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इन्हें प्रमुख सचिव सूचना की जिम्मेदारी भी सौंप दी. दो वर्ष के रिकार्ड समय में सहगल ने 302 किलोमीटर लंबा आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे बनाकर अपनी क्षमता का लोहा मनवाया.
वर्ष 2017 में यूपी में भाजपा सरकार बनने के बाद एक बार फिर नवनीत सहगल किनारे कर दिए गए. इन्हें खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग के प्रमुख सचिव की कुर्सी मिली. नए प्रयोगों से सहगल ने यूपी में खादी को एक अगल पहचान दिलाई. खादी की कई नई पॉलिसी लागू की गई जिसमें पहली बार प्रोडक्शन को बढ़ावा दिया गया.
यह बढ़े हुए प्रोडक्शन का ही नतीजा था कि सहगल ने मास्क बनाने के लिए छह लाख खादी के कपड़े का इंतजाम चुटकियों में कर दिया. कोरोना के बढ़ते संकट में सहगल ने मध्यम, लघु एवं सूक्ष्म विभाग को भी अलग पहचान दिलाई है. उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य था जहां बंद पड़े उद्योगों में कार्य कर रहे मजदूरों को भी मजदूरी दिलाई गई. सहगल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ‘वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट’ ( ओडीओपी) योजना को जिस तरह से पंख लगाए हैं उसकी तारीख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं.
साढ़े छह फुट लंबा यह अधिकारी उन दूसरे अधिकारियों के लिए मिसाल है जो प्राइम पोस्टिंग के लिए सारे तिकड़म लगाते रहते हैं जबकि अच्छे अधिकारियों को काम करने के लिए अच्छे विभाग की जरूरत नहीं पड़ती.