126 विमान सौदों की तुलना में 36 विमानों के नए सौदे में भारतीय जरूरतों के हिसाब से बदलाव करने में 17.08 फीसदी धन की बचत की गई. इस रिपोर्ट में सभी मदों का विवरण दिया गया है कि आखिर राफेल सौदे में किस मद में कितना पैसा है. इसका विवरण इस प्रकार है-
राफेल सहित भारतीय वायु सेना के कुल 11 खरीद सौदों की समीक्षा करने वाली नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में कहा गया है कि यूपीए सरकार की तुलना में एनडीए सरकार का सौदा सस्ता है, वहीं, दूसरी तरफ वायु सेना की खरीद प्रक्रिया पर भी कई सवाल खड़े किए गए हैं.
सीएजी रिपोर्ट में साल 2012-17 के दौरान किए गए भारतीय वायु सेना के 11 खरीद सौदों की समीक्षा की गई है. सीएजी ने कहा कि वायु सेना के साज-ओ-सामान की सही कीमत और सही समय में खरीद के लिए यह जरूरी होता है कि उनकी गुणात्मक जरूरत (एयर स्टाफ क्वालिटेटिव रिक्वायरमेंट्स-ASQRs) वास्तव में यूजर की जरूरत को पूरा करता हो, ज्यादा से ज्यादा प्रतिस्पर्धी सौदा हो और तकनीक एवं कीमतों का मूल्यांकन वस्तुनिष्ठ तरीके से किया जाए.
सीएजी ने कहा कि वायुसेना ने ASQRs समुचित तरीके से नहीं किए, जिसका नतीजा यह हुआ कि कोई भी वेंडर पूरी तरह इस मानक पर खरा नहीं उतर पाया. यही नहीं, खरीद प्रक्रिया के दौरान ASQRs में बार-बार बदलाव किया गया. इसकी वजह से तकनीक और कीमत के मूल्यांकन में कठिनाई आई और प्रतिस्पर्धी टेंडर की ईमानदारी प्रभावित हुई. इसकी वजह से खरीद प्रक्रिया में देर हुई.
राफेल सौदे के बारे में इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2016 के कॉन्ट्रैक्ट में किसी तरह गारंटी या वारंटी नहीं दी गई है. जबकि 2007 के सौदे में दसॉ एविएशन ने प्रदर्शन की और वित्तीय गारंटी दी थी. यह गारंटी कुल कॉन्ट्रैक्ट कीमत के 15 फीसदी तक थी.’
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