आगामी बजट में स्वास्थ्य सेवाओं को सुचारू बनाने और उन्हें आम आदमी की पहुंच में लाने के लिए अहम प्रविधान हो सकते हैं। आर्थिक सर्वेक्षण में इसके साफ संकेत दिए गए हैं। इसमें स्वास्थ्य क्षेत्र पर बजट आवंटन को जीडीपी के मौजूदा एक फीसद से बढ़ाकर 2.5 से तीन फीसद करने की जरूरत बताई गई है। इसके साथ ही समाज के अंतिम व्यक्ति तक सस्ती और बेहतर स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने के लिए टेलीमेडिसिन जैसे डिजिटल प्लेटफार्म को बड़े पैमाने पर अपनाने की सिफारिश की गई है।
आर्थिक सर्वेक्षण में स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारी खर्च और आम आदमी पर इलाज के बोझ का सीधा संबंध दिखाया गया है। इसके अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकार का खर्च जीडीपी के एक फीसद से बढ़कर 2.5 से तीन फीसद होने की स्थिति में आम लोगों पर इलाज खर्च का बोझ 35-65 फीसद कम हो जाएगा। इससे बड़ी संख्या में लोगों को गरीबी से बचाया जा सकेगा। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार भारत आम लोगों को स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के मामले गरीब और निम्न आय वाले देशों की श्रेणी में बना हुआ है। बेहतर व गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के मामले में 180 देशों में भारत 145वें स्थान पर है। इसे दुरुस्त करने की जरूरत है।
आर्थिक सर्वेक्षण में आयुष्मान भारत और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की तारीफ करते हुए उन्हें आगे चलाए रखने की जरूरत बताई गई है। लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं में निजी क्षेत्र के आधिपत्य और नियमन की कमी पर ¨चता भी जताई गई है। इसमें निजी क्षेत्र के लिए नियामक के गठन की जरूरत बताई गई है, ताकि सेवाओं को एकरूप बनाया जा सके।
आर्थिक सर्वेक्षण से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि डिजिटल हेल्थ मिशन और टेलीमेडिसिन को बढ़ावा देने के लिए बजट में विशेष प्रविधान हो सकता है। इसके अनुसार कोरोना काल के दौरान दूरदराज के गावों में लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए ई-संजीवनी जैसे ऐप की अहम भूमिका रही थी। इसे आगे बड़े पैमाने पर अपनाने की जरूरत है।
तकनीक आधारित और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से लैस ये डिजिटल प्लेटफॉर्म आम लोगों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने में सक्षम होंगे। आर्थिक सर्वेक्षण में केंद्र और राज्य सरकारों को इसे मिशन मोड में लागू करने की सलाह दी गई है। केंद्र सरकार ने फिलहाल डिजिटल हेल्थ मिशन के पायलट प्रोजेक्ट को लांच किया है। जाहिर है अगले वित्त वर्ष में यह पूरे देश में लागू हो सकता है।