पानीपत जिला परिषद की पूर्व चेयरपर्सन काजल देशवाल पर बड़ा एक्शन हुआ है। उन पर फर्जी जाति प्रमाणपत्र बनवाकर चुनाव लड़ने के आरोप में धोखाधड़ी, जालसाजी और षड्यंत्र रचने का केस दर्ज हुआ है। यह कार्रवाई मुख्यमंत्री नायब सैनी को भेजी गई शिकायत के बाद हुई।
भाजपा नेता प्रदीप कुमार शर्मा ने सीएम को शिकायत भेजी थी कि काजल देशवाल ने पिछड़ा वर्ग (BC-A) का फर्जी सर्टिफिकेट बनवाकर पानीपत जिला परिषद के वार्ड-13 से चुनाव लड़ा। यह वार्ड पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित था। वह भाजपा नेता प्रदीप कुमार की पत्नी ज्योति शर्मा को कुर्सी से हटाकर चेयरपर्सन बनी। बाद में जब उनकी जाति प्रमाणपत्र की जांच शुरू हुई तो भाजपा में शामिल हो गई थी।
इस दौरान इनको प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली ने आशीर्वाद दिया था और बीजेपी का पटका पहनाया। तब काजल ने कहा था-बड़ौली के निर्देश पर काम करेंगे। जांच में जाति सर्टिफिकेट फर्जी साबित हुआ और उन्हें जून 2025 में पद से हटा दिया गया। अब पानीपत सिटी थाना में IPC की धाराओं 420, 467, 468 और 471 के तहत FIR दर्ज हो गई है।
मामले की जानकारी देते हुए एडीसी पंकज यादव ने बताया की मुख्यमंत्री के निर्देश पर हमें ACS की तरफ से एक लेटर प्राप्त हुआ था जिसमे काजल की जाति पर संशय था इसके बाद डीसी महोदय ने एक जांच अधिकारी नियुक्त किया था फिर यूपी के डीएम को रिकॉर्ड मुहैया करवाने की रिक्वेस्ट की थी जिसके बाद सारा रिकॉर्ड हमें प्राप्त हुआ और सारी रिपोर्ट हमने वापस ACS को सौंप दी थी…
वहीं डीएसपी सतीश वत्स ने जानकारी देते हुए बताया कि इस मामले की पहले से जांच चली हुई थी अब काजल देशवाल पर आरोप सिद्ध हुए हैं जिसके चलते एक एफआईआर दर्ज की गई और मामले की आगामी जांच चल रही है।
पानीपत जिला परिषद की चेयरपर्सन की कुर्सी पिछले 3 साल में दो बार भरी। पहली चेयरपर्सन ज्योति शर्मा भाजपा के समर्थन से बनीं थी। जबकि दूसरी बार काजल देशवाल चेयरपर्सन बनने के बाद भाजपाई बन गईं थी। दोनों ही लंबे समय तक कुर्सी पर नहीं टिक पाईं। अब चेयरपर्सन की कुर्सी खाली है।
ज्योति शर्मा 27 दिसंबर 2022 को भाजपा के समर्थन से जिला परिषद चेयरपर्सन चुनी गई थीं। लेकिन उनके खिलाफ लामबंदी शुरू हो गई। 6 मार्च 2024 को उन्हें पद छोड़ना पड़ा। उस समय 17 में से 13 पार्षद उनके खिलाफ खड़े थे। इसके बाद 14 जून 2024 को इन्ही लामबंद पार्षदों के समर्थन से काजल देशवाल सर्वसम्मति से चेयरपर्सन बन गईं। लेकिन सिर्फ एक साल ही इस पद पर रह पाईं। जाति प्रमाणपत्र फर्जी साबित होने पर उन्हें बर्खास्त कर दिया गया।
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