भारतीय उपमहाद्वीप के शुष्क व अर्द्ध शुष्क जलवायु क्षेत्रों में होने वाला नीम का वृक्ष अनेक औषधीय गुणों की खान है। विज्ञान की भाषा में एजाडिरेक्टा इंडिका नाम से जाना जाने वाला यह वृक्ष मैलिएसी जाति का है तथा भारत के अतिरिक्त यह दक्षिण−पूर्व एशिया, मध्य अमेरिका, अफ्रीका, फिजी, मारीशस, अरब, फिलीपीन्स तथा कई अन्य देशों में भी पाया जाता है। नीम के सभी अंग अर्थात् पत्ते, फूल, फल, छाल, शाखाएं आदि औषधि के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। नीम के फल (निम्बोली) से बीज निकलता है जिससे तेल मिलता है। नीम के तने से गोंद मिलता है। ये भी दवा के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार नीम हल्का, कटु−तिक्त, कषाय शीतल होता है जो तीन प्रकार के दोषों अर्थात पात, पित्त और कफ संबंधी विकारों का नाश करता है। यह कब्ज मलेरिया, पीलिया, कुष्ठ प्रदर, सिर दर्द, दांत संबंधी रोगों और त्वचा रोगों में गुणकारी होता है। यह बहुत ही अच्छा रक्तशोधक तथा कीटाणुनाशक होता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार नीम की तासीर बहुत गर्म तथा खुश्क होती है।
उपदंश और कुष्ठ के उपचार के लिए इसे सर्वोत्तम औषधि माना गया है। होम्योपैथी के अनुसार पुराने जीर्ण रोगों के लिए सबसे अच्छी दवा नीम है। नीम का तेल जोकि गंध व स्वाद में कड़वा होता है प्रथम श्रेणी की कीटाणुनाशक होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह दुर्गन्धनाशक, वातहर तथा शीतपित्त, कुष्ठ तथा पायरिया जैसे रोगों में बहुत लाभकारी होता है। नीम एक अच्छा गर्भनिरोधक भी माना जाता है।
बवासीर जैसे कष्टकारी रोग के इलाज के लिए नीम तथा कनेर के पत्ते बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। इस मिश्रण को प्रभावित भाग पर लगाने से कष्ट कम होता है। नीम के पत्तों तथा मूंग दाल को मिलाकर पीस कर बिना मसाले डाले तलकर खाने से भी इस रोग में आराम मिलता है। इस दौरान रोगी के भोजन में छाछ व चावल का समावेश भी करें। मसालों का प्रयोग बहुत कम यदि सम्भव हो तो बिल्कुल न करें। रोज सुबह निबोरियों का सेवन करने से भी आराम मिलता है। प्रभावित अंग पर नीम का तेल भी लगाया जा सकता है।
बुखार या मलेरिया होने पर नीम का काढ़ा दिया जा सकता है। इस काढ़े को बनाने के लिए एक गिलास पानी में नीम के पत्ते, निम्बोली, काली मिर्च, तुलसी, सोंठ, चिरायता बराबर मात्रा में डालकर उबालें। इस मिश्रण को इतनी देर उबालें जिससे कि आधा पानी वाष्प बनकर उड़ जाए। बाद में इस मिश्रण को छानकर रोगी को दिन में तीन बार एक−दो चम्मच पिलाएं। नीम के पत्तों और उसकी अंतर छाल का चूर्ण भी विषम ज्वर में फायदा पहुंचाता है।
मलेरिया में नीम की पत्तियों को फिटकरी तथा पानी के साथ मिलाकर गोली के रूप में बुखार के एक घंटा पहले तथा एक घंटा बाद में दें। इससे भी मलेरिया ठीक हो जाता है। दांतों तथा मसूढ़ों के रोगों के उपचार में नीम से बनी दातुन का कोई सानी नहीं है। नीम की पत्तियों को उबाल कर ठंडा करके चबाने से पायरिया में आराम मिलता है।
नीम के फूल के काढ़े से गरारे करने और नीम की दातुन का प्रयोग करने से हम दांत और मसूढ़ों से संबंधित रोगों से बच सकते हैं। पथरी की समस्या से निपटने के लिए लगभग 150 ग्राम नीम की पत्तियों को 21 लीटर पानी में पीसकर उबालें और पी लें इससे पथरी निकल सकती है।पथरी यदि गुर्दे में है तो नीम के पत्तों की राख की लगभग 2 ग्राम मात्रा प्रतिदिन पानी के साथ लेने से लाभ मिलता है। नीम की पत्तियों को सरसों के तेल में जलाने के बाद हल्दी डालकर दुबारा जलाएं बाद में इसे छानकर शहद मिलाकर रख लें।
रात को सोते समय इस मिश्रण की एक−दो बूंद लेने से कान का बहना रुकता है। गुनगुने नीम के तेल की दो−तीन बूंदें कान में टपकाने से कान के दर्द में राहत मिलती है। पेट संबंधी अनेक समस्याओं से निजात पाने में भी नीम सहायक होता है। नीम के फूलों को गर्म पानी में मसलकर व छानकर सोते समय पीने से कब्ज दूर होती है।
नीम की पत्तियों को सुखाकर शक्कर मिलाकर खाने से दस्त में आराम मिलता है। पेट के कीड़ों को नष्ट करने के लिए नीम के पत्तों के रस में शहद और काली मिर्च मिलाकर दिया जाना चाहिए। पेचिस होने की स्थिति में नीम की भुनी हुई अतर छाल का चूर्ण दही में मिलाकर लेना चाहिए।
जुकाम होने पर नीम की पत्तियां काली मिर्च के साथ पीसकर गोलियां बना लें। गर्म पानी के साथ ये तीन−चार गोलियां खाने से जुकाम ठीक हो जाता है। नीम के पत्ते, छाल और निम्बोली को बराबर मात्रा में मिलाकर पीसने से बने लेप से त्वचा पर होने वाले फोड़े−फुसियां तथा घाव जल्दी ठीक हो जाते हैं। इस लेप को दिन में कम से कम तीन बार प्रभावित हिस्से पर लगाना चाहिए।
नीम के पत्तों को दही में पीसकर लगाने से दाद ठीक हो जाते हैं। बेवची एक अन्य त्वचा रोग है जो घुटनों व टखनों के बीच पैर पर होता है। एग्जीमा की तरह इसमें जलन और खुजली होती है। इसमें नीम का रस या नीम की पत्तियों की राख लगाने से राहत मिलती है। रक्त को शुद्ध करने के लिए नीम के फूलों का चूर्ण आधा−आधा चम्मच सुबह शाम लेना चाहिए। दोपहर में लगभग दो चम्मच नीम के पत्तों का रस भी लें।
त्वचा संबंधी रोगों में इससे आश्चर्यजनक लाभ मिलता है। कुष्ठ जैसे कष्टकारी रोगों की चिकित्सा भी नीम द्वारा संभव हैं इसके लिए नीम के सूखे पत्तों तथा हरड़ को बराबर मात्रा में मिलाकर व पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण की एक चम्मच मात्रा सुबह शाम चार−छह हफ्ते तक लेने से लाभ होता है। नीम की कोपलों के रस में मिश्री मिलाकर सुबह−शाम पीने से गर्मी में राहत मिलती है।
नीम की पत्तियों का तेल हथेलियों और तलवों पर लगाने से उनकी जलन दूर होती है। गर्मी के प्रभाव के कारण अमाशय में विकृति आने पर पानी में नीम का रस मिलाकर पीना चाहिए। पित्ताशय से आंत में पहुंचने वाले पित्त में रुकावट आने से पीलिया होता है। ऐसे में रोगी को नीम के पत्तों के रस में सोंठ का चूर्ण मिलाकर देना चाहिए। इस दौरान रोगी को मात्र दही चावल ही खाने दें।
कई दिनों तक बुखार रहने या भारी भोजन करने से प्लीहा यकृत के बढ़ने की शिकायत हो सकती है। ऐसे में नीम के पत्तों का चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है। नीम के तेल को गर्म करके मालिश करने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है। वे लोग जो गठिया रोग से पीड़ित हैं उनके लिए भी यह लाभदायक होता है। नीम के उपयोगों की फेहरिस्त बहुत ही लंबी है। जिसका पूर्ण वर्णन शायद संभव ही नहीं है। हालांकि नीम के अनेक फायदे हैं परन्तु रूक्ष प्रकृति वाले व्यक्ति तथा वे व्यक्ति जिनकी कामशक्ति निर्बल हो, को नीम के अधिक सेवन से बचना चाहिए क्योंकि यह उनके लिए हानिकारक हो सकता है।