New Delhi: दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं बनी, जिसपर सभी लोग सहमत हो सके। आप कोई भी मुद्दा उठा लीजिए, उसके पक्ष और विपक्ष में आपको प्रतिक्रिया जरूर मिल जाएगी, यानि किसी एक बात पर कुछ लोग सहमत तो कुछ लोग असहमत दिखेंगे।
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ऐसी ही एक चीज है खजुराहो के मंदिर, जहां पर कामुक मूर्तियों के प्रति लोगों की मिली-जुली राय देखने को मिलती है। कुछ लोग इसे प्रेम की अभिव्यक्ति के रूप में देखते हैं तो कुछ के लिए ये अश्लीलता की चरम सीमा है। राय जो भी हो लेकिन मन में एक प्रश्न हमेशा उठता है कि आखिर खजुराहों में इतनी कामुक मूर्तियां क्यों बनाई गई हैं।
आमतौर पर इसके पीछे 3 मान्यताएं हैं: कुछ विश्लेषकों का यह मानना है कि प्राचीन काल में राजा-महाराजा भोग-विलासिता में अधिक लिप्त रहते थे। वे काफी उत्तेजित रहते थे। इसी कारण खजुराहो मंदिर के बाहर कामुक मुद्रा में विभिन्न मूर्तियां बनाई गई हैं। राजा के आदेशानुसार शिल्पकारों और मूर्तिकारों को ऐसी मूर्तियां बनाई हैं।
दूसरी मान्यता के अनुसार प्राचीन काल लोग कामवासना या सेक्स के विषय पर खुलकर बात नहीं करते थे। ऐसा माना जाता है कि उन अद्भुत आकृतियों को देखने के बाद लोगों को संभोग की सही शिक्षा मिलेगी, ये सोचकर ही इन आकृतियों का निर्माण करवाया गया था। प्राचीन काल में मंदिर ही एक ऐसा स्थान था, जहां लगभग सभी लोग जाते थे, इसलिए इस कार्य के लिए मंदिरों को चुना गया।
ऐसा माना जाता है मोक्ष के लिए हर इंसान को चार रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है, धर्म, अर्थ, योग और काम। इसी दृष्टि से मंदिर के बाहर कामुक मूर्तियां लगाई गई हैं, क्योंकि यही ‘काम’ है और इसके बाद भगवान की शरण में जाने का मार्ग साफ हो जाता है क्योंकि कामवासना शांत करने के बाद कोई व्यक्ति संतुष्ट हो जाता है। इसी कारण इसे देखने के बाद भगवान के शरण में जाने की कल्पना की गई थी।
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