नालंदा जिले के हिसुआ प्रखंड में कैथिर रेपुरा रोड के समीप मुरली पहाड़ की गोद में दुल्हन शिवालय है। दुल्हन शिवालय एक ही परिसर में दो है। दोनों शिवालयों में शिवलिंग से लेकर आर्किटेक्चर व नक्काशी एक समान है।बड़ी खबर: अब रुस देगा भारत को 48 आर्मी ट्रांसपोर्ट हेलीकॉप्टर, नहीं होगी आर्मी को अब…
मंदिर का निर्माण सास-बहू ने मिलकर करवाया था। इस कारण मंदिर का नाम दुल्हन पड़ा। हालांकि ये दोनों दुल्हन कौन थी और कहां की थी यह कोई नहीं जानता, क्योंकि मंदिर अति प्राचीन है।
मंदिर में खासियत यह है कि शिवलिंग का पत्थर रंग बदलता है। शिवलिंग का रंग मंदिर में सूर्य की रोशनी के हिसाब से घटता बढ़ता रहता है। मंदिर के पुजारी बैद्यनाथ पाण्डेय उर्फ लाल बाबा के अनुसार सुबह में शिवलिंग का रंग चॉकलेटी रहता है।
धीरे- धीरे मंदिर में सूर्य की रोशनी के साथ ही शिवलिंग का चॉकलेटी रंग हल्का होने लगता है। उन्होंने बताया कि मंदिर में नाग का भी वास है। मंदिर के गर्भगृह में मौजूद दीवार के तहखाने में नाग देवता को जाते हुए कई लोगों ने देखा है।
मंदिर अति प्राचीन है। उचित रखरखाव के अभाव में मंदिर काफी जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। हाल में ही कैथिर के एक भक्त सुबोध सिंह ने मन्नतें पूरी होने पर मंदिर का रंग -रोगन करवाया था। इसमें जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से पूजा करता है उसका प्रतिबिंब शिवलिंग में झलकता है।
लाल बाबा विगत 23 वर्षों से मंदिर परिसर में रहकर मंदिर की सेवा में तल्लीन हैं। गौरीचक पटना निवासी बैद्यनाथ पाण्डेय उर्फ लाल बाबा हिसुआ में बीएलडब्ल्यू के पद पर कार्यरत थे।
उनका कार्यक्षेत्र कैथिर,हादसा व आसपास का गांव था। आते -जाते उनकी नजर जीर्ण-शीर्ण मंदिर पर पड़ी तो वे मंदिर में ही रहकर सेवा करने लगे। सेवानिवृत्ति के पश्चात वे अपने आप को पूर्णत: मंदिर की सेवा में समर्पित कर दिए।
वो बताते हैं कि मंदिर में सच्चे मन से आने वाले लोग कभी निराश नहीं होते हैं। भगवान भोलेनाथ सभी की मनोकामना पूर्ण करते हैं। यहां के रहने वाले मिथिलेश सिन्हा ने बताया कि मंदिर कब बना और किसने बनाया कहीं उल्लेखित नहीं है।
बड़े- बुजुर्ग सिर्फ यही बताते हैं कि सास और बहू दोनों ने एक- एक मंदिर का निर्माण कराया। इसीलिए इस मंदिर को लोग दुल्हन मंदिर कहते हैं। पुजारी लाल बाबा के अनुसार मंदिर टेकारी महाराज की बहुओं के द्वारा बनवाई गई है।