बारिश से तरबतर करने वाला मानसून बुधवार को हरियाणा से विदा हो गया। 24 वर्षों में पहली बार मानसून की विदाई इतनी जल्दी हुई है। इससे पहले 2001 में 18 सितंबर को मानसून की हरियाणा से वापसी हुई थी। उसके बाद के वर्षों में मानसून की विदाई सितंबर के आखिरी दिनों व अक्तूबर के पहले या दूसरे हफ्ते में होती रही है।
हरियाणा में मानसून का आगमन 24 जून को हुआ था। जून से लेकर दस सितंबर तक मानसून पूरी तरह से सक्रिय रहा है। हर महीने सामान्य से ज्यादा बारिश दर्ज की गई है। जून में 71.7 एमएम बारिश रिकॉर्ड हुई, जो सामान्य से 30 फीसदी अधिक थी। जुलाई में 173.8 मिलीमीटर बारिश हुई, जो सामान्य से 15 फीसदी अधिक दर्ज हुई। वहीं, अगस्त में 194.5 मिलीमीटर बारिश दर्ज हुई, जो सामान्य से 32 फीसदी अधिक थी। सितंबर में 129.5 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड हुई, जो सामान्य से 77 फीसदी ज्यादा है।
27 साल में सबसे ज्यादा बरसा मानसून
इस बार का मानसून कई मायनों में विशेष रहा है। बीते 27 वर्षों में सबसे ज्यादा मानसून इस साल बरसा। इससे पहले 1998 में 698 मिलीमीटर बारिश सीजन में दर्ज की गई थी, जो सामान्य से 39.6 फीसदी ज्यादा थी। हरियाणा में सबसे ज्यादा अधिक बारिश फतेहाबाद में सामान्य से 121 फीसदी ज्यादा रिकॉर्ड हुई। जिले में 259 मिलीमीटर के मुकाबले 572.9 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई। वहीं, महेंद्रगढ़ में सामान्य से 109 फीसदी, कुरुक्षेत्र में 87 फीसदी, झज्जर में 83 फीसदी, हिसार में 74 फीसदी और सिरसा में 67 फीसदी रिकॉर्ड बारिश दर्ज हुई।
कब-कब मानसून गया
साल मानसून
2001 18 सितंबर
2002 26 सितंबर
2003 27 सितंबर
2005 28 सितंबर
2007 दो अक्तूबर
2013 17 अक्तूबर
2015 29 सितंबर
2017 30 सितंबर
2021 आठ अक्तूबर
2024 दो अक्तूबर
मानसून जल्दी जाने के क्या हैं मायने
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डा. वीरेंद्र सिंह लाठर ने बताया, मानसून जल्दी जाने से की वजह अब फसलों को फायदा होगा। बादल व बारिश न होने से फसलों में कीड़े व बीमारी कम होगी। अब कई फसलें पक चुकी हैं या फिर पकने की अवस्था में हैं। बारिश से पोलन झड़ जाता है, जो अब नहीं झड़ेगा। इससे पूरा पोषण मिलेगा और बीज की बनावट अच्छी होगी।