भक्ति और चिकित्सा का संगम, राऊ पहाड़ी पर स्थित जबरेश्वर महादेव मंदिर

मराठा शासनकाल की धार्मिक विरासत और बीते दौर की स्वास्थ्य सुविधाओं की अनोखी कहानी समेटे है राऊ की पहाड़ी पर स्थित जबरेश्वर महादेव मंदिर। यह मंदिर न सिर्फ श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि एक ऐतिहासिक गवाह भी है, जब टीबी जैसी घातक बीमारी से जूझते मरीजों को यहां उपचार के लिए लाया जाता था। इंदौर की स्थापना जिस इंद्रेश्वर महादेव के नाम पर मानी जाती है, उसी परंपरा की पुष्टि करती है जूनी इंदौर और कान्ह-सरस्वती नदी के किनारे बसे शिव मंदिरों की श्रृंखला। इसी शिवभक्ति की कड़ी में राऊ की पहाड़ी पर जबरेश्वर महादेव मंदिर भी शामिल है, जो आज भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) इंदौर के परिसर में स्थित है।

1914 में शुरू हुआ था टीबी अस्पताल
पहाड़ी पर स्थित यह स्थान पहले टीबी सेनेटोरियम के रूप में जाना जाता था। 1 जनवरी 1914 को होलकर महाराजा सवाई तुकोजीराव ने इसकी स्थापना की थी। 20 बिस्तरों वाला यह सेनेटोरियम सार्वजनिक चंदे से बना था। बाद में सरकार ने इसका संचालन अपने हाथ में ले लिया था। इससे जुड़े एक वार्ड की आधारशिला बोहरा समाज के धर्मगुरु ने रखी थी, जिसे 20,000 रुपये की लागत से उज्जैन के सेठ खान साहब नजरअली ने बनवाया था। यूरोपीय शैली में तैयार वार्ड की डिजाइन मिस्टर करवा ने तैयार की थी और डॉ. सर जेम्स रॉबर्ट्स ने सहयोग किया था।

टीबी मरीजों के लिए प्राकृतिक उपचार केंद्र
उस दौर में क्षयरोग (टीबी) को छुआछूत की बीमारी माना जाता था। इसलिए मरीजों को नगर से दूर, राऊ की पहाड़ी के खुले और शुद्ध पर्यावरण में बने अस्पताल में भेजा जाता था। यहाँ इलाज के साथ-साथ मरीज भगवान शिव की पूजा कर स्वस्थ होने की कामना भी करते थे।

अब यहां है आईआईएम इंदौर
अक्टूबर 2000 में राऊ सेनेटोरियम के 17 भवनों को ध्वस्त कर इस भूमि को भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) को सौंप दिया गया। 148 एकड़ में फैले इस परिसर की आधारशिला दिसंबर 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने रखी थी। वर्ष 2003 में IIM इंदौर का संचालन इसी परिसर से शुरू हुआ।

मंदिर में नहीं मिलती IIM से सहायता
हालांकि मंदिर आज भी श्रद्धा का केंद्र है, लेकिन इसके रखरखाव में IIM कोई सहायता नहीं करता। मंदिर का जीर्णोद्धार पिगडंबर गांव के नागरिकों ने कराया है। शिवरात्रि पर विशेष पूजा का आयोजन होता है और उस दिन IIM प्रशासन आगंतुकों को परिसर में प्रवेश की अनुमति देता है, लेकिन आम दिनों में मंदिर तक पहुंचना कठिन होता है।

बिना शिखर का मंदिर, दो शिवलिंग और नंदी विराजमान
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता इसका वास्तु है । मंदिर का कोई शिखर नहीं है और इसकी छत चौकोर है। मंदिर में दो शिवलिंग स्थापित हैं और साथ ही नंदी की प्रतिमा भी विराजित है।

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