गुजरात आणंद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और सीएम भूपेंद्र पटेल ने सरदार पटेल की 150वीं जयंती पर त्रिभुवन कोऑपरेटिव यूनिवर्सिटी का भूमि पूजन किया। यह देश की पहली सहकारी क्षेत्र पर केंद्रित यूनिवर्सिटी होगी, जो युवाओं को उच्च शिक्षा व प्रशिक्षण देगी।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती के मौके पर त्रिभुवन कोऑपरेटिव यूनिवर्सिटी का भूमि पूजन और शिलान्यास किया। यह कार्यक्रम गुजरात के आणंद जिले में आयोजित किया गया, जहां बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। त्रिभुवन कोऑपरेटिव यूनिवर्सिटी कोऑपरेटिव (सहकारी) क्षेत्र से जुड़े युवाओं को उच्च शिक्षा और प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से बनाई जा रही है। यह देश की पहली यूनिवर्सिटी होगी जो खास तौर पर सहकारी क्षेत्र पर केंद्रित होगी।
‘देश को एकजुट करने में सरदार पटेल की अहम भूमिका’
भूमि पूजन कार्यक्रम के दौरान अमित शाह ने देश को एकजुट करने में सरदरा पटेल की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सरदार पटेल ने देश को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई थी और उन्होंने सहकारिता आंदोलन को भी मजबूत किया था। ऐसे में उनकी जयंती पर इस यूनिवर्सिटी की नींव रखना बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है।
विश्वविद्यालय पूरे देश के सहकारी आंदोलन को देगा नई दिशा
वहीं इस अवसर पर मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा कि यह विश्वविद्यालय गुजरात और पूरे देश के सहकारी आंदोलन को नई दिशा देगा और युवाओं को रोजगार के बेहतर अवसर प्रदान करेगा। उन्होंने कहा कि यह विश्वविद्यालय न केवल शिक्षा का केंद्र बनेगा, बल्कि सहकारी संस्थाओं के लिए शोध और नवाचार का मंच भी प्रदान करेगा। सरकार का मानना है कि यह यूनिवर्सिटी भविष्य में सहकारिता के क्षेत्र में क्रांति लाने का काम करेगी और देश को आत्मनिर्भर बनाने में मददगार होगी।
बता दें कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के आधार पर, विश्वविद्यालय की शैक्षणिक संरचना पीएचडी, प्रबंधकीय स्तर पर डिग्री, पर्यवेक्षी स्तर पर डिप्लोमा और परिचालन स्तर पर प्रमाण पत्र सहित कई लचीले और बहु-विषयक कार्यक्रमों की पेशकश करेगी। यह अपने परिसर और अन्य राज्यों में विषय-विशिष्ट स्कूल स्थापित करेगा और सहकारी शिक्षा और प्रशिक्षण की गुणवत्ता को मानकीकृत करने के लिए एक राष्ट्रीय नेटवर्क बनाएगा। अमित शाह भारत के सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के उद्देश्य से कई प्रमुख कार्यक्रमों में भाग लेने वाले हैं।
अगले चार वर्षों में 200 से अधिक सहकारी संस्थाएं जोड़ी जाएंगी
राष्ट्रीय नेटवर्क बनाने के लिए, विश्वविद्यालय अगले चार वर्षों में 200 से अधिक मौजूदा सहकारी संस्थाओं को जोड़ने का प्रयास करेगा। विश्वविद्यालय सहकारी अध्ययन पर आधारित पीएचडी कार्यक्रमों के माध्यम से एक मजबूत शिक्षक आधार विकसित करेगा। इससे भारत के अनुमानित 40 लाख सहकारी कर्मियों और 80 लाख बोर्ड सदस्यों की कौशल विकास और क्षमता निर्माण की जरूरतें पूरी होंगी।
अभी कुछ राज्यों तक ही सीमित है सहकारी शिक्षा
वर्तमान में, सहकारी शिक्षा कुछ राज्यों तक सीमित है और विभिन्न संस्थानों में बिखरी हुई है, जो इस क्षेत्र में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है। वर्तमान में भारत में सहकारी समितियों में नवाचार और सस्ती प्रौद्योगिकियों पर केंद्रित अनुसंधान और विकास का समर्थन करने के लिए कोई संस्थागत तंत्र नहीं है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए। विज्ञप्ति में कहा गया है। इसे ध्यान में रखते हुए, विश्वविद्यालय में एक समर्पित अनुसंधान और विकास परिषद की स्थापना की जाएगी, जो सहकारी क्षेत्र में अनुसंधान और विकास करेगी और संबद्ध संस्थानों में इसे बढ़ावा भी देगी। इसके अलावा, यह भारत में दुनिया की सर्वोत्तम प्रथाओं को स्थापित करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ समन्वय करेगी।