शीतला सप्तमी का व्रत स्वास्थ्य के महत्व को दर्शाता है। इस दिन लोग माता शीतला की पूजा करते हैं। कहा जाता है कि जो भक्त इस पावन व्रत का पालन करते हैं उन्हें सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वहीं इस दिन शीतला सप्तमी की कथा का पाठ जरूर करना चाहिए क्योंकि यह व्रत (Sheetala Saptami 2025 Katha) का मुख्य भाग माना जाता है।
शीतला सप्तमी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह तिथि देवी शीतला को समर्पित है, जिन्हें स्वच्छता और स्वास्थ्य की देवी के रूप में पूजा जाता है। यह त्योहार होली के बाद चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार, 2025 में, शीतला सप्तमी 21 मार्च यानी आज के दिन मनाई जा रही है, जो साधक इस कठिन व्रत का पालन कर रहे हैं, उन्हें इस दिन (Sheetala Saptami 2025) की व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए, क्योंकि इसके बिना व्रत अधूरा माना जाता है, तो चलिए यहां पढ़ते हैं।
शीतला सप्तमी व्रत की कथा (Sheetala Saptami 2025 Katha)
एक समय की बात है एक वृद्ध महिला और उसकी दो बहुओं ने देवी शीतला के लिए कठिन व्रत का पालन किया। दोनों बहुओं ने मान्यताओं के अनुसार, एक दिन पहले ही प्रसाद के लिए भोजन बनाकर तैयार कर लिया, लेकिन दोनों बहुओं के बच्चे छोटे थे, इसलिए उन्होंने सोचा कि कहीं बासी खाना उनके बच्चों को नुकसान न कर दे। इसलिए उन्होंने बच्चों के लिए ताजा खाना दोबारा से तैयार किया, जब वे दोनों शीतला माता की पूजा के बाद घर वापस लौटीं, तो उन्होंने अपने बच्चों को मृत पाया। इस दृश्य को देखकर वे जोर-जोर से विलाप करने लगीं।
तब उनकी सास ने उन्हें बताया कि ”यह शीतला माता के प्रकोप का प्रभाव है। ऐसे में जब तक ये बच्चे जीवित न हो जाएं, तब तक तुम दोनों घर वापस मत आना।” दोनों बहुएं अपने मृत बच्चों को लेकर इधर-उधर भटकने लगीं, तभी उन्हें एक पेड़ के नीचे दो बहनें बैठी मिलीं जिनका नाम ओरी और शीतला था। वे दोनों बहने गंदगी और जूं के कारण बहुत परेशान थीं। उन्होंने उनकी सहायता की और उनके सिर की गंदगी साफ की,
जिससे शीतला और ओरी ने प्रसन्न होकर दोनों को पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। तब उन दोनों बहुओं ने अपनी सारी व्यथा उन दोनों बहनों को बताई। इस पर शीतला माता अपने स्वरूप में उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें बताया कि ”ये सब शीतला सप्तमी के दिन ताजा खाना बनाने के कारण हुआ है। तब दोनों बहुओं ने माता शीतला से क्षमा याचना की और आगे से ऐसा न करने को कहा।”
माता शीतला ने खुश होकर दोनों बच्चों को फिर से जीवित कर दिया। इसके बाद दोनों बहुएं बड़ी प्रसन्नता के साथ घर लौटीं और तभी से शीतला माता के लिए व्रत करने लगीं।