IIT मद्रास की बड़ी कामयाबी, बैलिस्टिक मिसाइलों से इमारतों को बचाने वाला सिस्टम किया विकसित

देश में बुनियादी ढांचे को मिसाइलों के हमले से बचाया जा सकेगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी), मद्रास के शोधकर्ताओं ने ऐसा फ्रेमवर्क विकसित किया है जो बैलिस्टिक मिसाइलों के खतरे का सामना करने के लिए देश में महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा मजबूत कर सकता है।

शोधकर्ताओं की योजना है कि इसी फ्रेमवर्क की मदद से ऐसा हल्का, कम खर्च वाला और टिकाऊ बैलिस्टिक-प्रूफ मटेरियल बनाया जाए, जिसे सेना सीमा पर बंकर बनाने में इस्तेमाल कर सके।

इमारतों को बचाने वाला सिस्टम
अक्सर बैलिस्टिक मिसाइलों से बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचता है। यह फ्रेमवर्क या ढांचा डिजाइनरों को मजबूत कंक्रीट (आरसी) के पैनलों के बैलिस्टिक प्रतिरोध को बेहतर बनाने के लिए नया समाधान विकसित करने में मदद करेगा। अनुसंधान के निष्कर्ष प्रतिष्ठित पत्रिका ‘रिलाइएबिलिटी इंजीनियरिंग एंड सिस्टम सेफ्टी’ में प्रकाशित हुए हैं।

कंक्रीट संरचनाओं के लिए बैलिस्टिक डिजाइन महत्वपूर्ण है
‘कम्प्यूटेशनल सिमुलेशन’ तकनीक का उपयोग करते हुए अनुसंधानकर्ताओं ने आरसी पर मिसाइलों के प्रभाव का अध्ययन किया, जो सैन्य बंकरों, परमाणु ऊर्जा भवनों और पुलों से लेकर रनवे तक महत्वपूर्ण संरचनाओं के निर्माण के लिए उपयोग की जाने वाली मुख्य सामग्री है।आईआईटी मद्रास के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर अलागप्पन पोन्नालगु ने कहा, इन संरचनाओं के रणनीतिक महत्व के कारण इन्हें बचाना आवश्यक है। कंक्रीट संरचनाओं के लिए बैलिस्टिक डिजाइन महत्वपूर्ण है।

सिमुलेशन कम्प्यूटिंग तकनीक का उपयोग किया
बैलिस्टिक्स इंजीनियरिंग का क्षेत्र है जो गोलियों, बमों और राकेटों के प्रक्षेपण, उड़ान और प्रभावों से संबंधित है। इस विज्ञान का उपयोग न केवल बंकरों को डिजाइन करने के लिए किया जाता है, बल्कि परमाणु ऊर्जा भवनों, पुलों और अन्य सुरक्षात्मक संरचनाओं की दीवारों को डिजाइन करने के लिए भी किया जाता है।शोधकर्ताओं ने फाइनाइट एलीमेंट (एफई) सिमुलेशन कम्प्यूटिंग तकनीक का उपयोग किया जिससे यह पता लगाया कि मिसाइलों का कंक्रीट पर क्या असर पड़ता है। सिमुलेशन ऐसी तकनीक है, जिससे असर का अनुमान लगाया जाता है और फिर उस पर कैसे काबू पाया जा सकता है, इसका डिजाइन तैयार किया जाता है।

शोधकर्ताओं ने एक फार्मूला भी तैयार किया, ऐसे करेगा काम
नया सिस्टम दो मानकों पर आधारित है। इनमें डेप्थ आफ पेनिट्रेशन (डीओपी) यानी मिसाइल कितनी गहराई तक कंक्रीट में घुसती है और क्रेटर डैमेज एरिया यानी टकराने से बनने वाले गड्ढे का आकार शामिल है। शोधकर्ताओं ने एक फार्मूला भी तैयार किया है, जिससे कंक्रीट पर मिसाइल हमले के बाद बनने वाले गड्ढे का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। यह अध्ययन आरसी पैनलों के बैलिस्टिक व्यवहार को समझने में भी सहायक है। इस नए फ्रेमवर्क से डिजाइनर्स को ज्यादा भरोसेमंद और सटीक डाटा मिलेगा, जिससे वे ऐसी संरचनाएं बना सकेंगे, जो मिसाइल हमलों का बेहतर सामना कर सकें।

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