स्पेस डॉकिंग अंतरिक्ष में दो अंतरिक्ष यानों को जोड़ने की तकनीक है। यह एक ऐसी तकनीक है जिसकी सहायता से मानव को एक अंतरिक्ष यान से दूसरे अंतरिक्ष यान में भेज पाना संभव होता है।
इसरो के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने गुरुवार को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में बताया कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन अपने विश्वसनीय ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पर स्पैडेक्स नामक स्पेस डॉकिंग प्रयोग के प्रदर्शन के लिए मिशन की तैयारी कर रहा है। उन्होंने कहा कि रॉकेट तैयार हो रहा है और बंगलूरू स्थित अंतरिक्ष एजेंसी के वैज्ञानिक इस महीने के अंत में इसके प्रक्षेपण की उम्मीद कर रहे हैं।
एनएसआईएल और ईएसए का धन्यवाद किया
एस. सोमनाथ ने पीएसएलवी-सी59/प्रोबास-3 मिशन के सफल प्रक्षेपण के लिए न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल), यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के अधिकारियों को धन्यवाद दिया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस मिशन (पीएसएलवी-सी59-प्रोबास-3 मिशन) के समान ही दिसंबर में पीएसएलवी-सी60 का प्रक्षेपण होने वाला है।
इसरो के अध्यक्ष ने कहा, “यह (पीएसएलवी-सी60 मिशन) ‘स्पेस डॉकिंग’ प्रयोग का प्रदर्शन करेगा, जिसे ‘स्पैडेक्स’ नाम दिया गया है। रॉकेट अभी तैयार किया जा रहा है और हम प्रक्षेपण से संबंधित अंतिम चरण की गतिविधियों की तैयारी कर रहे हैं, जो संभवतः दिसंबर में ही पूरी हो सकती हैं।”
स्पेस डॉकिंग अंतरिक्ष स्टेशन के संचालन के लिए महत्वपूर्ण
बता दें कि स्पेस डॉकिंग अंतरिक्ष में दो अंतरिक्ष यानों को जोड़ने की तकनीक है। यह एक ऐसी तकनीक है जिसकी सहायता से मानव को एक अंतरिक्ष यान से दूसरे अंतरिक्ष यान में भेज पाना संभव होता है। स्पेस डॉकिंग अंतरिक्ष स्टेशन के संचालन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। डॉकिंग में अंतरिक्ष यान अपने आप ही स्टेशन से जुड़ सकता है। अंतरिक्ष में दो अलग-अलग चीजों को जोड़ने की यह तकनीक ही भारत को अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने में और चंद्रयान-4 परियोजना में मदद करेगी।
प्रोबा-3 मिशन पर सोमनाथ ने बताया कि गुरुवार का मिशन हीलियोफिजिक्स (सूर्य और उसके ग्रहों का अध्ययन) के बारे में है और भारत में ‘वैज्ञानिकों का एक मजबूत समूह’ है, जो यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम कर रहा है।
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