एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ने मैरिटल रेप (Marital Rape) के अपराधीकरण का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर कहा है कि यह कदम विवाह नाम की संस्था को अस्थिर कर देगा।
एनजीओ पुरुष आयोग ट्रस्ट द्वारा (NGO Purush Aayog Trust) अपनी अध्यक्ष बरखा त्रेहन के माध्यम से दायर याचिका में मैरिटल रेप के अपराधीकरण और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) प्रावधान से संबंधित याचिकाओं के एक बैच में अदालत के हस्तक्षेप की मांग की गई है, जो जबरन यौन संबंध के लिए अभियोजन पक्ष के खिलाफ पति को सुरक्षा प्रदान करता है। अगर पत्नी वयस्क है।
दलील में कहा गया है कि शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा है और अपराध बनाने की शक्ति पूरी तरह से विधायिका के पास है।
याचिका में कहा गया, “मैरिटल रेप के मामले से संबंधित किसी भी पर्याप्त सबूत के बिना एक विवाह समाप्त हो सकता है। यदि जबरन संभोग का कोई सबूत है, तो पत्नी की गवाही के अलावा कोई अन्य प्राथमिक सबूत नहीं हो सकता है। यह आसानी से विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकता है।”
महिलाओं के झूठे आरोपों के चलते कई पुरुषों ने आत्महत्या की
वकील विवेक नारायण शर्मा के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों में देशभर में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं, जहां पुरुषों ने महिलाओं द्वारा लगाए गए झूठे आरोपों के कारण आत्महत्या कर ली।
उन्होंने कहा, “ऐसे अनेक मामले सामने आए हैं, जिनमें विवाहित महिलाओं ने ऐसे प्रावधानों का दुरुपयोग किया है। ऐसे मामलों में यौन उत्पीड़न, 498ए और घरेलू हिंसा शामिल हैं। यदि आईपीसी की धारा 375 के अपवाद II को हटा दिया जाता है, तो यह पत्नियों के लिए उत्पीड़न और पति को कठपुतली बनाने का एक ‘आसान उपकरण’ (Easy Tool) बन सकता है। विशेष रूप से यह देखते हुए कि बलात्कार के मामलों में सजा की मात्रा बहुत अधिक है और सबूत का बोझ अभियुक्तों पर है।”
इसमें कहा गया है, “पत्नी द्वारा बलात्कार के किसी भी आरोप को पत्नी की सच्चाई के रूप में माना जाना चाहिए और व्यक्तिगत और वैवाहिक संबंधों की प्रकृति के कारण पति किसी भी विरोधाभासी साक्ष्य दे पाने में असमर्थ होगा।”
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा है जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने 16 जनवरी को हुई सुनवाई में मैरिटल रेप के अपराधीकरण और पत्नी के वयस्क होने पर जबरन संभोग के लिए पति पर केस चलाने के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने वाले आईपीसी प्रावधान से संबंधित याचिकाओं के एक बैच पर केंद्र से जवाब मांगा था।
केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच को बताया था कि इस मुद्दे के कानूनी और साथ ही सामाजिक पहलू हैं और सरकार इन याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करना चाहेगी।
शीर्ष अदालत ने वकील पूजा धर और जयकृति जडेजा को नोडल काउंसिल नियुक्त करते हुए कहा था कि याचिकाओं की सुचारू सुनवाई के लिए सभी पक्षों को 3 मार्च तक अपनी लिखित दलीलें दाखिल करनी होंगी।