जमीन और पहाड़ों पर ही नहीं, अब समुद्र में भी निगरानी के लिए विशेष ड्रोन तैयार करेंगे आइआइटी के विज्ञानी

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) के विज्ञानी जमीन और पहाड़ों पर ही नहीं, अब समुद्र में भी निगरानी के लिए विशेष ड्रोन तैयार करेंगे। संस्थान की इन्क्यूबेटेड कंपनियों के साथ ही अन्य निजी कंपनियों से भी प्रस्ताव मांगे गए हैं। कोशिश यह है कि एेसे ड्रोन बनाए जा सकें, जो समुद्र में डेढ़ से दो किमी की दूरी तक एक साथ कई जीवन रक्षक जैकेट भी पहुंचा सकें, ताकि समुद्र में डूबते लोगों की जान बचाई जा सके।

रक्षा मंत्रालय के आइडेक्स (इनोवेशन फार डिफेंस एक्सीलेंस) प्राइम कार्यक्रम के तहत आइआइटी को प्रमुख सहयोगी बनाया गया है। इसके तहत आइआइटी के विशेषज्ञ विभिन्न रक्षा संगठनों व सेनाओं की जरूरतों के मुताबिक तकनीक और उपकरण विकसित कराने की कोशिश कर रहे हैं। देश की सीमा व पहाड़ी क्षेत्रों पर निगरानी के लिए विभ्रम ड्रोन तैयार करने के साथ आइआइटी के विज्ञानी दुश्मन देश के मानव रहित यान (ड्रोन) को निष्क्रिय करने के लिए विशेष साफ्टवेयर तैयार करा रहे हैं। अब इंडियन कोस्ट गार्ड (भारतीय तटरक्षक बलों) की जरूरत को ध्यान में रख विशेष ड्रोन विकसित कर रहे हैं, जो समुद्र में काफी दूरी तक उड़ान भर सके और दो से चार किग्रा तक सामान भी ले जाने और निगरानी करने में सक्षम हो।

ड्रोन में यह होगी खूबियां

– समुद्र के भीतर जहाजों से उड़ान भरने में सक्षम होंगे।

– तेज हवा या बिगड़ते मौसम में भी निगरानी कर सकेंगे।

– दुश्मन की नावों व जहाजों को देख उसकी सूचना भेज सकेंगे।

– समुद्र में तेल रिसाव की उपस्थिति का पता लगा सकेंगे।

– उच्च गुणवत्ता वाले कैमरों से रिकार्ड वीडियो और चित्रों भेजेंगे।

– 45 मिनट तक दो किमी दूरी और 500 फीट ऊंचाई तक उड़ान भरेंगे।

– ट्रैकिंग, आटो रिकवरी और खुद लौटने की तकनीक से लैस होंगे।

संस्थान की कई कंपनियां बना रही ड्रोन : आइआइटी की कई स्टार्टअप कंपनियां ड्रोन विकसित कर रही हैं। एन्ड्योर एयर के साथ ही पाइ ड्रोन, सीडी स्पेस रोबोटिक्स भी अत्याधुनिक ड्रोन बना रही हैं। जिनका इस्तेमाल भूमि की मैपिंग व सर्विलांस के कार्यों में हो रहा है। इसके अलावा नोएडा, दिल्ली व बेंगलुरु में भी कई निजी कंपनियां ड्रोन विकसित कर रही हैं।

विभ्रम जल्द ही सेना के बेड़े में होगा शामिल : आइआइटी की कंपनी की ओर से विकसित ड्रोन ‘विभ्रम’ का ट्रायल पूरा हो चुका है और जल्द ही यह थल सेना के बेड़े में शामिल होगा। पेट्रोल इंजन वाला ड्रोन जहां 12500 फिट की ऊंचाई तक उड़ान भर कर मैदान में चार किग्रा तो पहाड़ों पर ये तीन किग्रा तक भर ले जा सकता है। वहीं इलेक्ट्रिक वर्जन का ड्रोन 18000 फिट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है। भार क्षमता उसकी पेट्रोल वर्जन के जैसी ही है। बार्डर एरिया में निगरानी कर सकता है। निगरानी के लिए इलेक्ट्रिक वर्जन ज्यादा मुफीद है क्योंकि उसमें किसी तरह की आवाज नहीं होती।

-रक्षा मंत्रालय के आइडेक्स कार्यक्रम के तहत समुद्र के ऊपर उड़ सकने वाले ड्रोन विकसित कराए जाएंगे। इनकी मदद से नौसेना को भारतीय तटों की निगरानी और रक्षा संबंधी अन्य कार्यों में काफी मदद मिलेगी। – प्रो. अंकुश शर्मा, सह प्रभारी, स्टार्टअप इन्क्यूबेशन एंड इनोवेशन सेंटर, आइआइटी कानपुर।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com