यूपी पंचायत चुनाव इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी गई चुनोती

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई है जिसमें वर्ष 2015 को आधार वर्ष मानकर उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में सीटों के लिए आरक्षण लागू करने का आदेश दिया गया था। वास्तव में इस फैसले को लेकर कुछ लोग खुश हैं और कुछ इसके विरोध में हैं। इस व्यवस्था से कई ग्राम पंचायत के समीकरण ही बदल गए हैं।

दिलीप कुमार नामक युवक ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) में कहा है कि हाईकोर्ट के फैसले पर विचार किया जाना चाहिए।

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि हाईकोर्ट में उनका पक्ष नहीं सुना गया। बता दें कि पिछले दिनों हाईकोर्ट ने वर्ष 2015 को आधार वर्ष मानकर प्रदेश में पंचायत चुनाव में आरक्षण लागू करने का आदेश दिया था और 25 मई तक पंचायत चुनाव संपन्न कराने के लिए कहा था।

उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिलों ने 2015 के चक्रानुक्रम को आधार मानते हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की सीटवार संशोधित अनंतिम आरक्षण सूची जारी कर दी गई है। अन्य जिलों में भी कल तक सूची जारी कर दिए जाने की संभावना है। इस संशोधन से प्रदेश भर में सीटों के आरक्षण में भारी बदलाव हुआ है। सीतापुर में 99 फीसदी से ज्यादा सीटें प्रभावित हुई हैं।

सरकार ने हाईकोर्ट के आदेशानुसार जिलाधिकारियों को प्रधानों व क्षेत्र पंचायत प्रमुखों के पदों के आरक्षण तथा जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत व ग्राम पंचायत वार्डों के आरक्षण व आवंटन की प्रस्तावित सूची 20 से 22 मार्च तक प्रकाशित किए जाने के निर्देश दिए थे। अवध के सीतापुर, अमेठी, रायबरेली, अंबेडकरनगर, अयोध्या, गोंडा-बलरामपुर, श्रावस्ती व बाराबंकी में जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य, ब्लॉक प्रमुख और ग्राम प्रधानों के पदों के लिए आरक्षण का निर्धारण कर शुक्रवार को सूची जारी कर दी गई।

इसके अनुसार अंबेडकरनगर में आधे से ज्यादा सीटों पर आरक्षण बदल गया है। गोंडा व बाराबंकी में यह करीब 60 प्रतिशत है। अब सभी जिलों के डीएम 23 मार्च तक प्राप्त आपत्तियों का 24 व 25 के बीच निस्तारण करेंगे और 26 को अंतिम सूची जारी करेंगे।

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