भारत और चीन : एशिया के दो सबसे बड़े मुल्कों के बीच आने वाले वक्त में रिश्ते और भी बिगड़ सकते

आठ महीने पहले चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने लद्दाख से लगी पूर्वी सीमा पर फिंगर फोर एरिया में पेगोंग त्सो झील के उत्तरी किनारे पर घुसपैठ की कोशिश की. चीन का इरादा वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से लगने वाले सीमा पर यथास्थिति बदलने का था. ऐसे में माना जा रहा है कि भारत को लेकर चीन का रवैया बदलने वाला नहीं है. लद्दाख में हुआ विवाद तो सिर्फ एक शुरुआत था, माना जा रहा है कि एशिया के दो सबसे बड़े मुल्कों के बीच आने वाले वक्त में रिश्ते और भी बिगड़ सकते हैं.

भारत और चीन की सेना के बीच अभी तक आठ दौर की वार्ता हो चुकी है. इन वार्ताओं में शीर्ष कमांडरों ने भाग लिया है, लेकिन अभी तक सीमा विवाद को लेकर पूरी तरह से हल नहीं निकल पाया है. दोनों पक्षों के बीच विवाद को निपटाने के लिए बातचीत का दौर जारी है.

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, अभी तक भारत-चीन सेनाओं के बीच कमांडर स्तर की नौवें दौर की वार्ता के लिए तारीख तय नहीं हुई है. इसलिए हम भी अभी तक जल्दबाजी नहीं दिखा रहे हैं, क्योंकि चीनी पक्ष को तनाव को कम करने के लिए अभी कुछ स्पष्टीकरण के साथ वापस आना है.

उन्होंने कहा, हम लंबे समय तक टिके रहने के लिए तैयार हैं, लेकिन हमारा मुख्य लक्ष्य है कि दोनों सेनाएं अपने हथियारों को अपने बेस तक वापस ले जाएं. गौरतलब है कि दोनों सेनाओं ने गतिरोध बढ़ता हुआ देखकर सीमा पर हथियारों की तादाद को बढ़ा दिया है.

दोनों ही सेनाओं द्वारा पेगोंग त्सो झील के उत्तरी किनारे पर विवाद खत्म करने के लिए काम कर रही हैं. 14वें कॉर्प्स कमांडर और पीएलए के पश्चिमी कमान के कमांडर को बदलना भी इस बात संकेत है कि तनाव कम करने पर जोर दिया जा रहा है. गौरतलब है कि पूर्ववर्ती पीएलए कमांडर जनरल झाओ जोंग्की भारत और भूटान सीमा को लेकर आक्रामक थे.

एलएसी पर जहां यथास्थिति बहाल करने का प्रयास किया जा रहा है, वहीं भूटान सीमा पर चीनी सैनिकों द्वारा निर्माण कार्य किया जा रहा है. इससे भारत के सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर खतरा मंडरा रहा है. सिक्किम-भूटान सेक्टर भारत के लिए चिंता का सबब है, क्योंकि भूटान के पास मुख्य रूप से औपचारिक सेना है, जो चीनी सैनिकों का मुकाबला नहीं कर सकती है.

माना जा रहा है कि लद्दाख में जारी सीमा गतिरोध भले ही खत्म हो सकता है, लेकिन भारत के प्रति चीन का रवैये जल्दी खत्म नहीं होने वाला है. इसके पीछे की वजह मोदी सरकार का भारत प्रशांत और क्वाड के लिए अमेरिका के साथ गठजोड़ है. गौरतलब है कि क्वाड में भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका शामिल हैं.

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