कोरोना ने लगाया खेल पर रोक, बायो बबल के सहारे मैदान पर वापस हुए खिलाड़ी

जब पिछले साल जनवरी में ऑस्ट्रेलियन ओपन खत्म हुआ था तब किसी भी खिलाड़ी या अधिकारी ने सोचा नहीं था कि कोरोना महामारी का प्रकोप ऐसा फैलेगा कि सभी खेलों को बंद करने की नौबत आ जाएगी। प्रभाव सभी खेलों पर पड़ा, लेकिन सबसे ज्यादा असर एक-दूसरे को छूने वाले खेलों कुश्ती, मुक्केबाजी, फुटबॉल आदि पर दिखाई दिया। इस दौरान सबसे ज्यादा आस शतरंज ने जगाई।

बायो बबल का सहारा लेकर खिलाड़ियों को मैदान में उतारने की पहल की गई। किसी खिलाड़ी ने कोरोना से पहले बायो बबल (खिलाड़ियों के लिए बनाए गए विशेष माहौल) के बारे में नहीं सुना था, लेकिन यह अब खेल का प्रमुख अंग बन गया है। सबसे पहले फुटबॉल में इसका प्रयोग किया गया। इससे बाकी खेलों में भी उम्मीदें बंधीं। कई जगह तो मैदान में दर्शकों की भी वापसी हो गई और इसका सबसे बड़ा उदाहरण भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट सीरीज है।

बड़े फुटबॉलरों को फिर से मैदान में उतारने का श्रेय जर्मनी की फुटबॉल लीग बुंडिशलीगा के आयोजकों को जाता है, जिन्होंने सटीक रणनीति के साथ इसे अंजाम दिया। 2020 की पहली तिमाही में कोरोना के कारण बुंडिशलीगा के सत्र को स्थगित करना पड़ा था। यह 16 मई को दोबारा शुरू हुई और यूरोप में शुरू होने वाली पहली बड़ी लीग बनी। बुंडिशलीगा के आयोजकों ने बायो बबल तैयार किया जिसमें सिर्फ खिलाड़ी, आयोजक और सहयोगी स्टाफ ही थे। कड़े नियम बनाए गए।

खिलाड़ियों को शुरुआत में क्वारंटाइन किया गया। सबके कोरोना टेस्ट किए गए। क्वारंटाइन पीरियड में खिलाड़ी और स्टाफ एक-दूसरे से मिल नहीं सकते थे। उन पर होटल से बाहर निकलने पर भी प्रतिबंध रहा। पॉजिटिव पाए जाने वाले खिलाड़ी को कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद फिर 14 दिन तक क्वारंटाइन होना पड़ा। इतनी मेहनत के बाद बुंडिशलीगा लीग का सत्र पूरा हो सका।

उसके बाद मार्च से बंद पड़ी स्पेन की ला लीगा, इटली की सीरी-ए, इंग्लिश प्रीमियर लीग, यूएफा चैंपियंस लीग और यूरोपा लीग ने अपने-अपने सत्र समाप्त किए। ताइवान में तो चाइनीज लीग के दौरान खिलाड़ियों में जोश भरने के लिए मैदान पर प्रशंसकों के कटआउट और डमी लगाए गए। दर्शकों की जगह रोबोट को बैठाया गया। डेनमार्क की डेनिश सुपरलीगा में स्टेडियम में टीवी स्क्रीन लगाई गईं। इनमें ऐप पर लाइव मैच देख रहे प्रशंसकों को दिखाया गया।

आवाज के लिए स्टेडियम में स्पीकर भी लगाए गए। यह सब सिर्फ फुटबॉल तक सीमित नहीं रहा। सभी देशों और आयोजकों ने खेलों को शुरू करने के लिए ऐसे ही बायो बबल नियम अपनाए। बायो बबल के अलावा खेलों को दर्शकों के बिना कराने का दांव भी सफल रहा। पिछले साल विंबलडन ग्रैंडस्लैम रद्द हुआ। 1945 में दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह पहली बार रद्द हुआ था।

क्रिकेट के जन्मदाता इंग्लैंड ने कोरोना के साये में इस खेल को बहाल करने में अहम योगदान दिया। इंग्लैंड ने अपने घर में वेस्टइंडीज के साथ सफलतापूर्वक टेस्ट सीरीज आयोजित करके इसकी शुरुआत की। उस दौरान कैरेबियाई टीम को 14 दिन तक क्वारंटाइन रहना पड़ा था। इंग्लैंड की सीरीज के बाद अन्य सीरीज भी होने लगी, लेकिन सबसे ज्यादा नजरें विश्व कप

टी-20 और आइपीएल पर लगी थीं। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद आइसीसी ने टी-20 विश्व कप को स्थगित करके आइपीएल की राह आसान कर दी थी। इसके बाद भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) ने भारत में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच इस लीग को संयुक्त अरब अमीरात में बिना दर्शकों के सफलतापूर्वक आयोजित कराया।

यहां तक कि टूर्नामेंट शुरू होने से पहले चेन्नई सुपर किंग्स के सपोर्ट स्टाफ के कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद भी यह टूर्नामेंट सफलतापूर्वक आयोजित हुआ।

 

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