ताजमहल की नीलामी, अंग्रेजी अखबार में छपा इश्तिहार और मथुरा के सेठ ने सात लाख लगाई कीमत

संगमरमरी हुस्न के सरताज ताजमहल को आज दुनिया भर में उसकी खूबसूरती के लिए जाना जाता है। उस पर लगा मकराना की खदानों का संगमरमर पिछले वर्ष ग्लोबल हेरिटेज में शामिल हो चुका है। इंटरनेशनल यूनियन ऑफ जूलॉजिकल साइंस (आइयूजेएस) ने उसे ग्लोबल हेरिटेज स्टोन रिर्सोसेज के भारतीय शोध दल के प्रस्ताव पर यह दर्जा दिया है। ताजमहल की यह सुंदरता ही कभी उसके लिए सबसे बड़ा खतरा बन गई थी। ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड विलियम बैंटिक ने ताजमहल की नीलामी करा दी थी। मथुरा के सेठ लक्ष्मीचंद्र ने सात लाख रुपये की बोली लगाकर इसे खरीद भी लिया था, लेकिन लंदन असेंबली में विरोध के बाद नीलामी स्थगित कर दी गई आैर ताजमहल बच गया।

ब्रिटिश काल में वर्ष 1828 से 1835 तक लॉर्ड विलियम बैंटिक भारत के वायसराय रहे थे। बैंटिक चाहते थे कि ताजमहल की खूबसूरत पच्चीकारी और कार्विंग वर्क के पत्थरों को तोड़कर उनकी बिक्री की जाए, जिससे कि सरकारी खजाना भरा जा सके। इसके लिए उन्हाेंने ताजमहल की नीलामी करा दी थी। ब्रिटिश काल में भारत की राजधानी रहे कोलकाता से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी अखबार में 26 जुलाई, 1831 को ताजमहल की नीलामी का इश्तिहार छपा था। नीलामी में राजस्थान और मथुरा के सेठों ने बोलियां लगाई थीं। ब्रिटिशर्स के बीच मथुरा के सेठ लक्ष्मीचंद्र ने सात लाख रुपये की बोली लगाकर ताजमहल को खरीदा था। ताजमहल तोड़ने और उसके कीमती पत्थरों को लंदन ले जाकर बेचने पर अत्यधिक धन खर्च होता, इसके चलते वायसराय विलियम बैंटिक ने नीलामी स्थगित कर दी थी। बाद में उसने एक बार फिर ताजमहल की नीलामी की, जिसमें सेठों के साथ ब्रिटिशर्स को बुलाया गया। ताजमहल नीलाम होता, उससे पूर्व ही भारत से लंदन गए किसी सैनिक ने लंदन असेंबली में शिकायत कर दी। असेंबली में विरोध के बाद वायसराय को नीलामी रोकने को कहा गया, जिसके बाद ताजमहल की नीलामी रोक दी गई।

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