कोरोना संक्रमण की महामारी में वैसे तो सभी को सतर्क रहने की जरूरत है, लेकिन दिल के मरीजों को विशेष एहतियात बरतनी चाहिए। दुनियाभर के विशेषज्ञ मानते हैं कि कोरोना संक्रमण डायबिटीज, फेफड़ों व दिल के मरीजों को अपेक्षाकृत ज्यादा आसानी से अपनी गिरफ्त में ले लेता है।
हृदय पर यूं असर डालता है कोरोना : अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना सीधे तौर पर मरीजों के फेफड़े पर असर करता है। इससे शरीर में ऑक्सीजन का स्तर प्रभावित होता है। इस स्थिति में दिल को दूसरे अंगों तक खून पहुंचाने में काफी मेहनत करनी पड़ती है। इसके कारण दिल के टिश्यू कमजोर पड़ने लगते हैं, जिससे बीमारी पैदा होती है।
रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना से उबरने वाले 80 फीसद लोगों को दिल संबंधी परेशानी का सामना करना पड़ा। अप्रैल से जून के बीच किए गए इस शोध में 40-50 साल के ऐसे मरीजों को शामिल किया गया जो कोरोना से पहले स्वस्थ थे। शोध में शामिल किए गए 100 में से 78 मरीजों के दिल में सूजन दिखी। ब्रिटेन में भी हुए एक अध्ययन में ऐसी ही बातें सामने आईं। हालांकि, डॉक्टरों का एक वर्ग इससे सहमत नहीं है।
लॉकडाउन में जुटाए गए आंकड़े : कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया ने देश के 200 अस्पतालों में मार्च से जून तक यानी लॉकडाउन की अवधि में आने वाले हार्ट अटैक के मामलों पर अध्ययन कराया है। इस दौरान इन अस्पतालों में हार्ट अटैक के करीब 41 हजार मामले सामने आए। हालांकि, अभी आंकड़ों का विश्लेषण बाकी है।
देश में बहुत तेजी से बढ़ रही दिल की बीमारी लांसेट जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक वर्ष 1990 से 2016 के बीच भारत में दिल के मरीजों की संख्या में 50 फीसद का इजाफा हुआ है। इन वर्षों में दिल का दौरा पड़ने से मरने वालों की संख्या भी दोगुनी हो गई है। भारत में वर्ष 1990 में दिल की बीमारी से 13 लाख लोगों की मौत हुई थी, जिनकी संख्या वर्ष 2016 में 28 लाख हो गई। वर्ष 1990 में दिल के मरीजों की संख्या 2.57 करोड़ थी जो वर्ष 2016 में 5.45 करोड़ हो गई।
सर्वाधिक प्रभावित राज्य
केरल, पंजाब, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा व बंगाल।