आप सभी जानते ही होंगे हिंदू धर्म में गुरुवार के दिन भगवान विष्णु का पूजन होता है. जी दरअसल गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा महत्वपूर्ण होती है और जो इसे करता है उसे बड़े लाभ होते हैं. आप सभी को याद ही होगा कुछ दिनों पहले ही नेपाल में एक विचित्र रंग के कछुए को देखा गया था और उसे जगत के पालनहार भगवान विष्णु के कूर्म अवतार से जोड़कर देखा जा रहा है. ऐसे में अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं विष्णु के कूर्म अवतार के बारे में. जी दरअसल इस संबंध में शास्त्रों में एक पौराणिक कथा का वर्णन मिलता है जो हम आपको बताने जा रहे हैं.

पौराणिक कथा- एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवताओं के राजा इंद्र को श्राप दे दिया था जिसके कारण वे श्रीहीन हो गए. श्राप से मुक्ति के लिए इंद्रदेव विष्णु जी के पास गए. तब जगत के पालन हार ने इंद्र को समुद्र मंथन करने के लिए कहा. ऐसे में इंद्रदेव भगवान विष्णु के कहे अनुसार असुरों व देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए. समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और नागराज वासुकी को नेती बनाया गया. देवताओं और असुरों ने अपना मतभेद भुलाकर मंदराचल को उखाड़ा और उसे समुद्र की ओर ले चले, लेकिन वे उसे अधिक दूर तक ले नहीं जा सके.
तब भगवान विष्णु ने मंदराचल को समुद्र तट पर रख दिया. देवता और दैत्यों ने मंदराचल को समुद्र में डालकर नागराज वासुकी को नेती बनाया. लेकिन मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा. यह देखकर भगवान विष्णु विशाल कूर्म का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल के आधार बन गए. भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घूमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन संपन्न हो सका.
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