पूर्वजों की आत्मा की संतुष्टि और उनकी आत्मा तृप्ति के लिए श्राद्ध करना आवश्यक होता है. श्राद्ध हिंदू धर्म की एक प्राचीन परंपरा है. महाभारत काल से यह परंपरा चली आ रही है. उस दौरान सबसे पहला श्राद्ध महर्षि निमि द्वारा किया गया था, उन्हें इसके लिए उपदेश महातपस्वी अत्रि द्वारा प्रदान किया गया था. यूं तो आम तौर पर पितृ पक्ष ब्राह्मणों या पंडितों की देख-रेख में संपन्न होता है, हालांकि हमें भी इसकी विधि के बारे में जानकारी जरूर होनी चाहिए. तो आइए जानते हैं पितृ पक्ष से संबंधित विधि के बारे में…

श्राद्ध या पितृ पक्ष की विधि…
– जिस दिन आप श्राद्ध करना चाहते हैं उस दिन आपको प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान आदि से खुद को स्वच्छ कर लेना चाहिए. स्नान के बाद बिना सिले वस्त्र धारण करें.
– श्राद्ध के दौरान तिल, चावल और जौ को विशेष रूप से श्राद्ध सामग्री में शामिल करें.
– अब अगली कड़ी में आपको अपने पितरों का पसंदीदा भोजन बनवाना होगा. साथ ही उन्हें तिल अर्पित करें.
– तिल अर्पित करने के बाद आपको भोजन की पिंडी बनाकर उन्हें भोजन अर्पित करना होगा.
– ब्राह्मण को भोजन कराए. साथ ही आप अपने भांजे को भी भोजन करा सकते हैं. इन्हें दक्षिणा देने के साथ ही आपको वस्त्र भी देने होंगे.
– श्राद्ध की अंतिम प्रक्रिया में आपको कौओं को भोजन अवश्य कराना चाहिए. मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितर कौए के रूप में आते हैं.
श्राद्ध के मन्त्र…
जिस दौरान श्राद्ध प्रक्रिया हो उस दौरान ये मन्त्र जरूर उपयोग करें. श्राद्ध की शुरुआत के दौरान आपको ll देवताभ्य: पितृभ्य श्च महयोगिभ्यन एव चl नमः स्वाहायै स्व धायै नित्ययमेव भवान्युव तll मंत्र का जाप करना होगा. जबकि समाप्ति के बाद भी इसी मन्त्र का जाप करें. वहीं श्राद्ध के दिनों में आप ll ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ll मंत्र का जाप आपको करना चाहिए.
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