चीन द्वारा एकतरफा आक्रामकता से पूर्वी लद्दाख में स्थिति संवेदनशील बनी हुई है: रक्षा मंत्रालय

लद्दाख में चीन के घुसपैठ को ‘अतिक्रमण’ करार देते हुए भारत का कहना है कि चीन के साथ गतिरोध के लंबे समय तक बने रहने की संभावना है, क्योंकि उसकी मांग है कि भारत पैंगोंग झील से पीछे हट जाए. जिसके कारण डिसएंगेजमेंट को लेकर चल रही वार्ता में गतिरोध पैदा हो गया है.

भारतीय रक्षा मंत्रालय की ओर से एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए कहा गया कि डिसएंगेजमेंट की प्रक्रिया अटक गई है. भारतीय रक्षा मंत्रालय ने पहली बार चीनी घुसपैठ को अतिक्रमण (transgression) के रूप में स्वीकारते हुए आधिकारिक रूप से जानकारी अपनी वेबसाइट पर डाली थी.

हालांकि राजनीतिक स्तर पर विवाद बढ़ने के बाद गुरुवार को वेबसाइट से इस रिपोर्ट को अब हटा लिया गया है.

रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड किए गए नए दस्तावेज में लिखा गया, ‘चीनी पक्ष ने 17-18 मई को कुंगरांग नाला (पेट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी) 15 के पास, हॉट स्प्रिंग्स के उत्तर में), गोगरा (पीपी -17 ए) और पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे के क्षेत्रों में अतिक्रमण किया है. 5 मई के बाद से ही गलवान घाटी में तनाव बढ़ा हुआ है.’ रक्षा मंत्रालय ने transgression यानी अतिक्रमण शब्द का इस्तेमाल किया था.

चीनी घुसपैठ को अक्सर शिथिलता के रूप में संदर्भित किया जाता है, एक ऐसा शब्द जिसे डिक्शनरी में ‘कानून या नैतिक नियम को तोड़ने की क्रिया या प्रक्रिया’ के रूप में परिभाषित किया गया है. इसे किसी कानून, आदेश या कर्तव्य के उल्लंघन या उल्लंघन के रूप में भी परिभाषित किया जाता है.

हालांकि इसके बाद देश में उठे राजनीतिक विवाद के बाद वेबसाइट से हटा दिया गया क्योंकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर केंद्र सरकार पर सवाल उठाए.

सूत्रों का कहना है कि चीन की शर्त यह है कि वह लेक के फिंगर क्षेत्र से वापस चला जाएगा, लेकिन ऐसा भारत द्वारा भी किया जाना चाहिए, इससे स्थिति और अधिक जटिल हो गई है.

शुरुआती चरण में पैंगोंग झील से चीनी सैनिक फिंगर 4 से फिंगर 5 तक वापस लौट आए, लेकिन रिज लाइन पर अपनी तैनाती के साथ बरकरार रखे हुए हैं. भारत भी फिंगर 4 से वापस लौट आया, जहां दोनों पक्षों के सैनिक अपनी स्थिति बनाए हुए थे.

इस बीच फिंगर 5 और 8 के बीच चीन ने अपनी स्थिति को मजबूत कर ली है, वहां कई नौकाओं को ला चुका है और शीतकालीन तैनाती को ध्यान में रखते हुए नए अस्थायी झोपड़े भी स्थापित कर लिए हैं.

एक अधिकारी का कहना है कि चीन मांग करता रहा है कि अगर भारत चाहता है कि पैंगोंग झील से चीन वापस चला जाए तो पहले भारत को भी यहां से हटना होगा. इसने स्थिति को और अधिक मुश्किल बना दिया है क्योंकि भारत द्वारा आगे पीछे हटने का मतलब होगा कि अपने नियंत्रण में एक क्षेत्र छोड़ दिया जाए. इससे स्थिति बदल जाएगी.

पैंगोंग झील में रविवार की कोर कमांडर स्तर की पांचवें दौर की वार्ता में तीन महीने पुराने गतिरोध में सबसे बड़ा मुद्दा यही था.

रक्षा मंत्रालय के नोट में कहा गया, “जबकि सैन्य और राजनयिक स्तर पर समझौते और बातचीत पारस्परिक रूप से स्वीकार्य बनाने की कोशिश जारी है, लेकिन वर्तमान गतिरोध के लंबे समय तक रहने की संभावना है.

इसी नोट में कहा गया कि चीन द्वारा एकतरफा आक्रामकता से पूर्वी लद्दाख में स्थिति संवेदनशील बनी हुई है और इस पर करीबी निगरानी और त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता है. जबकि गलवान घाटी और पीपी 15 में शुरुआती स्तर पर डिसएंगेजमेंट हुआ, लेकिन पैंगोंग झील और गोगरा में अस्थिरता बनी रही.

सूत्रों ने बताया कि कोर कमांडर स्तर के पांचवें दौर की बातचीत के बाद भी पैंगोंग झील और डेपासांग को लेकर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच स्थिति संतोषजनक नहीं है. सूत्रों का कहना है कि भारतीय रुख को कमजोर करने का कोई सवाल ही नहीं है.

दिल्ली में मंगलवार को मोल्डो में सैन्य कमांडरों की वार्ता के दौरान हुई चर्चाओं की समीक्षा के लिए एक बैठक आयोजित की गई.

इस बैठक में चीन के स्टडी ग्रुप के सदस्यों ने भाग लिया, जिसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने की. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर भी चर्चा का हिस्सा थे.

कोर कमांडर स्तर की वार्ता का पांचवां दौर 2 अगस्त को हुआ और क्षेत्र में शीतकालीन तैनाती को ध्यान में रखते हुए तत्काल भविष्य की कोई योजना नहीं बनाई गई है.

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