नेपाल के प्रधानमंत्री केपीएस ओली ने नया दांव चलकर अपनी कुर्सी फिलहाल बचा ली है. ओली कैबिनेट में दल विभाजन अध्यादेश लाने की तैयारी में हैं और इसको लेकर उन्होंने तैयारियां शुरू कर दी हैं.
अभी नेपाल के कानून के मुताबिक दल विभाजन के लिए 40 प्रतिशत संसद सदस्य और 40 प्रतिशत पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य के समर्थन की आवश्यकता होती है, लेकिन नए अध्यादेश में इन दोनों में से कोई एक भी समर्थन होने पर दल विभाजन को मान्यता दे दी जाएगी.
ओली ने गुरुवार की सुबह कैबिनेट की बैठक कर इस निर्णय पर मुहर लगवा लिया है. इससे पहले ओली ने गुपचुप तरीके से एक नई पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) बना ली थी. अपनी कुर्सी को बचाने के लिए ओली के लिए यह एक मात्र रास्ता है.
नया विभाजन अध्यादेश लागू होने पर ओली अपने पद पर रहते हुए इसका फायदा उठा सकते हैं और अगर दल विभाजन के बाद संसद में रहे दलों के बीच कोई सहमति नहीं बन पाती है और किसी भी गठबंधन को बहुमत नहीं मिल पाता है तो ऐसे में वे संसद को भंग कर मध्यावधि चुनाव करा सकते हैं.
गुरुवार की सुबह नेपाल के प्रधानमंत्री आवास में जबरदस्त ड्रामा हुआ. 11 बजे कम्युनिस्ट पार्टी की स्थाई समिति की बैठक होनी थी, लेकिन ओली बैठक को दो घंटे टाल कर पहले राष्ट्रपति से मिलने गए, फिर कैबिनेट की बैठक की.
उसी दौरान लगभग घंटे भर से इंतजार कर रहे स्थाई समिति के सदस्य प्रचंड की अध्यक्षता में पीएम आवास में ही बैठक करने लगे. ओली ने कैबिनेट में विभाजन अध्यादेश कानून को लाने पर मुहर लगवा ली. उसके बाद प्रचंड ने ओली से मिलने की कोशिश की लेकिन ओली नहीं मिले.
जाहिर है उन्हें लगता है कि विभाजन अध्यादेश लाकर वे अपनी सरकार बचा सकते हैं. दूसरी तरफ अगर प्रचंड के नेतृत्व की पार्टी और दोनों विपक्षी पार्टियां साथ में आ जाएं तो सरकार बनने की एक संभावना बन सकती है.
लेकिन उसके लिए पहले सत्तारूढ़ दल में फूट जरूरी है और यह भी देखना है कि ओली के साथ कितने सांसद जाते हैं और प्रचंड के साथ कितने.
तीन साल पहले केपीएस ओली और पुष्प कमल दहाल प्रचंड ने अपनी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी और कम्युनिस्ट पार्टी यूएमएल का विलय कर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी बनाई थी.
अब एक फिर दोनों पार्टियां विभाजन के कगार पर हैं. नेपाल की सरपरस्ती करने वाला चीन चाहता है कि भले ही ओली की कुर्सी चली जाए, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन न हो.
लेकिन सत्ता के इस खेल में ओली ने फिलहाल एक नया दांव चल कर अपनी कुर्सी पर आए संकट को कुछ दिनों के लिए टालने की जरूर कोशिश की है.