भारत के टेक्नोलॉजी फील्ड में चीनी कंपनियां काफी लंबे वक्त से सक्रिय हैं। लेकिन चीनी कंपनियों के बनाए ऐप्य या सॉल्यूशन के साथ प्राइवेसी के हनन का खतरा बढ़ गया है। ऐसे में सरकार के साथ ही आम लोग और कई उद्यमी Made in India को तरजीह दे रहे हैं। इंटीग्रेशन विजार्ड्स सॉल्यूशन के सीईओ कुनाल किस्लेय ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स के इस्तेमाल वाले किसी सॉल्यूशन के लिए हम चीन पर निर्भर नहीं हैं।
इसलिए चीन के बहिष्कार से इस इंडस्ट्री पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि इंटेलिजेन्स कोई रामबाण नहीं है, जिससे हर लड़ाई जीत ली जाए। यह एक नयी तकनीक है जो तक़रीबन हर उद्योग की कार्यक्षमता को पहले से बेहतर करने में योगदान दे सकती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स का सही इस्तेमाल करके हम बहुत सारे डेटा हासिल करते हैं और उसका इस्तेमाल प्रॉसेस की बेहतरी में करते हैं।
बता दें कि AI के दो हिस्से होते हैं – सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर। AI के सॉफ्टवेयर कोड ओपन सोर्स होते हैं ताकि पूरी दुनिया के लोग इन्हें इस्तेमाल कर सकें और यह बेहतर होता जाए। AI के लिए जिस हार्डवेयर की जरूरत होती है जिसे कि AI चिप्स या कि ऐक्सेलरेटर्ज़ भी कहते हैं, उसे चीन की कई कंपनीज बनाती हैं।
इन हार्डवेयर की इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट Nvidia, Intel, Google जैसी कम्पनियों की है, जो कई और देश में भी इस कम्पोनेंट का निर्माण करती हैं। इसलिए, चीन पर निर्भर होने या उसका बहिष्कार करने से काम रुकने की परिस्थिति नहीं आएगी। भारत में कई AI बेस्ड कई स्टार्ट-अप्स हैं। कोरोना के कारण हुए लाकडाउन के बाद देश की कई कंपनियों ने कम्प्यूटर विज़न जैसी AI तकनीक कोअपनाया है, जिससे इस इंडस्ट्री में काफ़ी उछाल आया है।
भारत में लगभग चालीस लाख सॉफ्टवेयर डिवेलपर हैं, जिनका काम अंतरराष्ट्रीय स्तर का है। भारतीय और भारतीय मूल के व्यक्ति Google, Microsoft, Twitter, विश्व की कई बड़ी फ़र्म्ज़ में CEO और CTO की पोज़ीशन पर हैं। चीन मुख्य तौर पर मैन्युफ़ैक्चरिंग करता है। लेकिन उसमें भी मेड इन चाइना का लेबल लगाने से अधिकतर बड़ी कम्पनियां परहेज करती हैं। Evans Data के सर्वे के मुताबिक़, भारत में सॉफ़्टवेयर डिवेलपर्स की संख्या विश्व में सबसे तेज़ी से बढ़ रही है और 2024 में हम विश्व के सबसे ज़्यादा सॉफ्टवेयर डिवेलपर्स वाले देश हो जाएंगे। नीति आयोग ने AI, मशीन लर्निंग और इस तरह की और तकनीक के विकास लिए 3,660 करोड़ की राशि दी है। हम उम्मीद करते हैं कि हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर, दोनों हिस्सों के मामले में भारत एक दिनपूरी तरह आत्मनिर्भर हो सकेगा।