नकदी संकट से जूझ रही केंद्र सरकार को पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क में रिकॉर्ड बढ़ोतरी से चालू वित्त वर्ष में 1.6 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व मिल सकता है। इससे सरकार को कोरोना वायरस संकट के चलते लॉकडाउन से हो रहे राजस्व नुकसान की भरपाई करने में मदद मिलेगी।
मंगलवार देर रात सरकार ने पेट्रोल पर 10 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 13 रुपये प्रति लीटर उत्पाद शुल्क बढ़ा दिया। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें दो दशक के निचले स्तर पर चली गई हैं। इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए सरकार ने यह निर्णय किया है।
उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी का नतीजा सामान्य तौर पर पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि के रूप में सामने आता है लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय दरों में गिरावट के हिसाब से समायोजित हो गई है और कीमतों में इजाफा नहीं हुआ। अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतों में गिरावट से होने वाले लाभ को बढ़ाने की कोशिश में सरकार ने यह फैसला लिया है।
औद्योगिक सूत्रों के मुताबिक दो महीने से कम की अवधि में यह दूसरी बार उत्पाद शुल्क बढ़ाया गया है। वित्त वर्ष 2019-20 के बराबर उपभोग होने पर इससे सरकार को 1.7 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय होने की उम्मीद है।
हालांकि कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से किए गए लॉकडाउन के चलते ईंधन के उपभोग में कमी आई है। क्योंकि लोगों की आवाजाही पर रोक है। ऐसे में चालू वित्त वर्ष 2020-21 के बचे 11 महीनों में इस शुल्क बढ़ोतरी से होने वाली अतिरिक्त आय 1.6 लाख करोड़ रुपये रह सकती है।
इस बारे में रेटिंग एजेंसी मूडीज के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (कॉरपोरेट वित्त पोषण) ने कहा कि भारत सरकार के पेट्रोल पर 21 डॉलर प्रति बैरल और डीजल पर 27 डॉलर प्रति बैरल कर बढ़ाने से 21 अरब डॉलर का राजस्व मिलेगा। ऐसा तभी होगा जब सरकार साल भर इस शुल्क बढ़ोतरी को बरकरार रखती है।