देश भर में चैत्र कृष्ण पक्ष की सप्तमी अथवा अष्टमी तिथि को साल में एक बार ही माता शीतला देवी की पूजा की जाती है। घर-घर में पूजा के एक दिन पहले भोजन तैयार करके रखा जाता है।
उसी बासी भोजन का भोग अर्पित करने मंदिरों में भीड़ उमड़ती है। होलिका दहन के सातवें दिन पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस साल शीतला माता की पूजा मुख्य रूप से दो दिन 15 और 16 मार्च को की जाएगी।
इस दिन शहर के शीतला मंदिरों में सुबह 5 बजे से ही माता को भोग अर्पित करने का सिलसिला शुरू हो जाएगा। माता को अर्पित किए जाने वाले विविध व्यंजनों को बनाने की तैयारी में शनिवार को अनेक परिवार की महिलाएं जुटी रहीं।
शीतला मंदिर में बरसों से पूजा कर रहे सैनी परिवार के सदस्य बताते हैं कि भारतीय संस्कृति में सभी देवी-देवताओं को ताजा भोजन अर्पित करते हैं, लेकिन मां शीतला देवी को ही बासी भोजन का भोग लगाने की परंपरा है।
एक दिन पहले बने भोजन का भोग लगाकर परिवार वाले भी बासी भोजन ही ग्रहण करते हैं। पूजा वाले दिन घर में चूल्हा, गैस नहीं जलाया जाता। चैत्र कृष्ण पक्ष की सप्तमी अथवा अष्टमी तिथि को घर-घर में यह परंपरा निभाई जाएगी।
राजधानी में सबसे पुराना शीतला मंदिर पुरानी बस्ती के बूढ़ेश्वर मंदिर के बगल में स्थित है। मंदिर के पुजारी के अनुसार यहां 200 साल से चैत्र माह में पूजा की परंपरा निभाई जा रही है।
मंदिर की संस्थापक राजरानी श्रीमाली को स्वप्न में दर्शन देकर मां ने मंदिर बनवाने का आदेश दिया था। मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि जमीन में गड़े पत्थर को ही मूर्ति मानकर स्थापित किया गया है।
मान्यता है कि शीतला माता को ऐसा भोग अर्पित करना चाहिए जो शरीर को ठंडक प्रदान करने वाला हो। उन्हें ठंडी पूड़ी, पराठा, गुलगुला, छाछ, दही से बने व्यंजनों का भोग लगाया जाएगा।
पुरानी बस्ती के अलावा डंगनिया, रामकुंड समता कॉलोनी, आमापारा, गुढ़ियारी, मोवा, पचपेड़ी नाका जैसे अनेक इलाकों के शीतला मंदिरों में पूजा करने लोग उमड़ेंगे।