प्रदेश में बोर्ड परीक्षाएं हो रही हैं इनमें नकल रोकने के लिए कई तरह के इंतजाम किए गए हैं। इन्ही के तहत किसी भी परीक्षार्थी को चेहरा ढककर परीक्षा में आने की अनुमति नहीं है।
लेकिन जब इस नियम के तहत मुस्लिम छात्राओं के नकाब हटाने के लिए कहा गया तो बवाल मच गया। बोर्ड परीक्षाओं में नकल रोकने के लिए सरकार की सख्ती के चलते सूरत शहर में परीक्षा दे रही मुस्लिम समाज की छात्राओं को नकाब व हिजाब हटा कर परीक्षा देने को कहा गया तो जमिअत-ए-उलेमा हिंद ने इसे धर्म से जोड़ते हुए इसके खिलाफ जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा है।
जमिअत-ए-उलेमा हिंद सूरत शहर ने कहा कि हिजाब व नकाब इस्लाम धर्म की परंपरा व संस्कृति का अंग है, बोर्ड परीक्षा के दौरान उन्हें उतारने के लिए दबाव डालना मुस्लिम बालिकाओं को मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने के समान है।
जमिअत के पदाधिकारियों ने सूरत जिला कलेक्टर को एक ज्ञापन सौंपकर गुजरात माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की ओर से नकल रोकने के बहाने मुस्लिम छात्राओं को अपमानित व प्रताड़ित करने का आरोप लगाया।
उनका कहना है कि ऐसे हालात में बालिकाएं कैसे परीक्षा दे सकती हैं। जमिअत का कहना हैकि संविधान ने सभी धर्मावलंबियों को अपने तरीके से रहने व परंपराओं के निर्वाह की आजादी दी है।
ऐसे में मुस्लिम बालिकाओं का हिजाब व नकाब उतरवाना संविधान सम्मत नहीं है। परीक्षार्थियों ने भी कहा कि नकल रोकने के बहाने उनका हिजाब व नकाब उतारने का दबाव डाला जा रहा है जिससे छात्राएं मानसिक तनाव में है, ऐसी हालत में परीक्षा देना मुश्किल है।
उनका कहना है कि अब तक वे हर स्थल पर हिजाब पहनकर जाने की आदी रही हैं, परीक्षा कक्ष में अचानक परीक्षक उनहें नकाब व हिजाब उतारकर आने का दबाव डाल रहे हैं जो उनके लिए अपमान भरा है।
गौरतलब है कि गुजरात सरकार तथा गुजरात माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की ओर से हाल इस घटना पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है लेकिन सूरत के मुस्लिम समाज में इस घटना को लेकर गहरा रोष है।
उनका मानना है कि बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो चुकी हैं, नकल रोकने के लिए परीक्षकों के पास कईतरीके हैं, परीक्षा खंड में सीसीटीवी कैमरे भी लगे हुए हैं, नकल की चिट लाने पर उन्हें आसानी से पकडा जा सकता है पर ऐसा करने के बजाए बोर्ड अधिकारी उनहें उपेक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं।