राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से आयोजित कार्यशाला में विशेषज्ञों ने रखे विचार…

MP News : स्कूल में शिक्षक हों या प्राचार्य किसी भी बच्चे की जानबूझकर उपेक्षा नहीं कर सकते हैं। साथ ही शिक्षक बच्चों से यह भी नहीं कह सकते कि तुम पढ़ने में कमजोर हो, इसलिए पीछे बैठ जाओ। शिक्षक यह भी नहीं बोल सकते कि तुम नहीं कर सकते हो, तुमसे नहीं होगा। अगर शिक्षक ने बच्चों से ऐसी बात की तो यह मानसिक प्रताड़ना में शामिल होगा।

अगर बच्चों के साथ स्कूल में किसी भी प्रकार का मानसिक, शारीरिक या लैंगिक शोषण होता है तो यह बाल अधिकार का हनन है। यह जेजे एक्ट के तहत धारा-75 का उल्लंघन है। इसमें साफ उल्लेखित है कि ऐसे मामलों में स्कूल या शिक्षक के खिलाफ तीन या पांच साल की सजा और 1 लाख रुपए का जुर्माना भी देना पड़ सकता है।

यह बात बाल अधिकार विशेषज्ञ विभांशु जोशी ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीआर) द्वारा सरोजनी नायडू कन्या स्कूल में आयोजित राज्य स्तरीय कार्यशाला में कही। उन्होंने कहा कि शिक्षक बच्चों को उनके अधिकारों के बारे में बताएं। इस अवसर पर राज्य बाल आयोग के सदस्य ब्रजेश चौहान, राज्य शिक्षा केंद्र के प्रभारी अधिकारी रमाकांत तिवारी, जिला परियोजना समन्वयक पीआर श्रीवास्तव, स्कूल के प्राचार्य सुरेश खांडेकर सहित सभी जिलों के निजी व सरकारी स्कूलों के शिक्षक व प्राचार्य उपस्थित थे।

शरारत करने पर बच्चों को दंड न दें

बाल आयोग के सदस्य ब्रजेश चौहान ने कहा कि स्कूल में बच्चों के साथ किसी भी प्रकार की प्रताड़ना वर्जित है। अगर बच्चा स्कूल में शरारत करता है तो उसे शारीरिक या मानसिक दंड न देकर उसके माता-पिता को समझाएं। बच्चे की मनोवृत्ति को समझकर सकारात्मक व्यवहार कर उसमें बदलाव लाने का प्रयास करें। अगर बच्चे को काउंसिलिंग की जरूरत है तो कराएं। बच्चों पर किसी भी प्रकार का शोषण किया जाता है तो आयोग उसे गंभीरता से लेगा और स्कूल के ऊपर कानूनी कार्यवाही करने के लिए बाध्य होगा।

बच्चों से सकारात्मक संवाद करें

एनसीपीआर के सलाहकार रजनीकांत ने कहा कि स्कूलों में बच्चों को शारीरिक दंड एक चिंता का विषय है। इससे बच्चे अवसादग्रस्त और कुंठित हो रहे हैं। उनका सहज विकास अवरुद्घ होता है। शिक्षक बच्चों से संवाद करें और उनकी बातें सुनकर मनोवृत्ति को जानें। अगर पढ़ाया गया बच्चों को समझ में नहीं आता है तो शिक्षक पढ़ाने के तरीके में बदलाव करें।

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