भारत में कई राज्यों में सर्दी के मौसम में भी टिड्डी दलों के हमलों ने वैज्ञानिकों को हैरत में डाल दिया है। जलवायु परिवर्तन से जीव-जंतुओं के व्यवहार में भी बदलाव आना चिंता की बात है।

जनवरी और फरवरी तक टिड्डियों का प्रकोप बने रहने को इस कारण से जोड़ कर देखा जा रहा है। अभी भी भारत और पाकिस्तान में कई क्षेत्रों में खेती-बाड़ी पर टिड्डी दलों का हमला देखा जा सकता है। टिड्डी दलों के हमले की सबसे चिंताजनक बात यह रही कि वे कड़ाके की सर्दी के दौरान भी कहर बरपाती रहीं। इस बार वे मई के बाद से अब तक इतने लंबे समय तक कैसे सक्रिय रहीं, इसकी पड़ताल जारी है।
हाल ही में बीकानेर के भारतीय जनता पार्टी के विधायक बिहारी लाल राजस्थान विधानसभा में टिड्डियों से भरी टोकरी के साथ सदन का ध्यान दिलाने पहुंचे तो यह समस्या मीडिया की सुर्खियां बनी।
वहीं संसद में भी इस मसले पर सवाल-जवाब का दौर जुलाई 2019 से ही आरंभ हो गया था। राज्यसभा में 26 जुलाई 2019 को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक सवाल के जवाब में माना था कि जैसलमेर इलाके में 21 मई 2019 से रेगिस्तानी टिड्डी दलों का आक्रमण हुआ और बाद में इसका कई जिलों में विस्तार हुआ। तबसे उनकी मौजूदगी लगातार बनी रही और गुजरात के बाद वे पंजाब और हरियाणा की सीमा तक आ पहुंचीं।
टिड्डी दलों के हमले के बाद से ही भारत सरकार और गुजरात तथा राजस्थान की राज्य सरकारें सक्रिय रहीं, लेकिन उनके एक के बाद एक हमले होते रहे।
गुजरात में बीते मानसून के सीजन में बारिश देरी से हुई, जबकि राजस्थान जहां टिड्डियां सक्रिय थीं, वहां का मौसम ठंडा हो गया तो वहां से टिड्डियां अपेक्षाकृत गुजरात के गरम इलाकों में चली गईं और कई जिलों में फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया।
मई 2019 में जब पाकिस्तान की तरफ से आए टिड्डी दलों ने खेती पर पहला धावा बोला तो अफसरों और किसानों को हैरत नहीं हुई। लेकिन कुछ समय बाद यह बात समझ में आ गई कि यह हमला 1993 से भी बड़ा है। धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ने लगा और ये फसलों को भारी नुकसान पहुंचाने लगीं।
हालांकि जुलाई 2019 के दौरान खाद्य और कृषि संगठन ने चेतावनी जारी करते हुए कहा था कि इनका प्रकोप नवंबर महीने तक रहेगा। लेकिन 14 दिसंबर 2019 के बाद गुजरात के पांच जिलों में टिड्डी दलों ने जब भारी तबाही मचाना शुरू किया तो सबका चौंकना स्वाभाविक था।
टिड्डी दलों को समाप्त करने के लिए मैलाथियान का छिड़काव हुआ, लेकिन हालत सुधरी नहीं और ये पंजाब के मालवा इलाके तक अपनी मौजूदगी दिखाने लगीं।
राजस्थान में एक दर्जन जिलों में पिछले नौ महीनों तक सात लाख हेक्टेयर से अधिक भू-भाग पर फसलों को भारी नुकसान इन्होंने पहुंचाया। हालांकि राजस्थान में पौने चार लाख हेक्टेयर इलाके में दवाओं का छिड़काव भी हुआ।
सरकार ने पाकिस्तान के कृषि विभाग के साथ भी पांच बार बैठकें कीं। इस संकट को लेकर पाकिस्तान में तो राष्ट्रीय आपदा तक घोषित कर दी गई। वहां भी यह पहला मौका है जब सिंध और पंजाब के बाद खैबर पख्तून तक में टिड्डियों का दल पहुंच गया।
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