प्रदेश में मैदानों के साथ अब पहाड़ों पर भी उद्योगों के चढ़ने का रास्ता साफ हो गया है। शिक्षा, स्वास्थ्य, बेमौसमी सब्जी उत्पादन, कृषि व फल संरक्षण, चाय बागान और ऊर्जा परियोजनाओं के लिए पट्टे पर 30 एकड़ तक भूमि मिल सकेगी। पट्टा 30 वर्षो के लिए दिया जाएगा।
उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950)(संशोधन कानून अब लागू हो गया है। बीते माह दिसंबर में विधानसभा से पारित उक्त विधेयक राजभवन की मंजूरी के बाद अधिनियम बन चुका है। नए भूमि कानून में पर्वतीय क्षेत्रों में भी भूमि पट्टे पर लेने की राह तैयार की गई है।
भूमि कृषि, बागवानी, जड़ी बूटी उत्पादन, बेमौसमी सब्जियों, औषधीय पादपों एवं सुगंधित पुष्पों, मसालों के उत्पादन, वृक्षारोपण, पशुपालन व दुग्ध उत्पादन, मुर्गी पालन व पशुधन प्रजनन, कृषि एवं फल प्रसंस्करण, चाय बागान व वैकल्पिक ऊर्जा परियोजनाओं को दी जाएगी।
इसके लिए संशोधिन अधिनियम में मूल मूल अधिनियम की धारा 156 की उपधारा(1) के खंड(ग) में किसी संस्था, न्यास, फर्म, कंपनी या स्वयं सहायता समूह को अधिकतम 30 वर्षो के लिए किराये पर पट्टा देने का प्रावधान जोड़ा गया है। पट्टाधारक को अधिकतम 30 एकड़ और विशेष परिस्थितियों में 30 एकड़ से अधिक भूमि पट्टे पर दी जाएगी। पट्टा किराया में नकद, उपज या उपज के किसी अंश को शामिल किया जा सकेगा।
दिव्यांगों को भूमि आवंटन में पांच फीसद कोटा
राज्य में दिव्यांगजनों को कृषि व आवासीय उपयोग के लिए सरकारी भूमि के आवंटन में पांच फीसद आरक्षण दिया जाएगा। ऐसे आवंटन में दिव्यांग स्त्रियों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसके लिए उक्त उत्तराखंड (उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950)(संशोधन) अधिनियम में धारा 198 की उपधारा(9) के बाद एक नई उपधारा(10) को जोड़ा गया है।